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भाषाटीकास ०-अ० २९.(१६९) ¢ c । और छहपलप्रमाणका भी ताम्रपात्र बनता है उसमें बारह अंगु लका विस्तारकरना, छह अंगुल ऊँचा करना, चार अंगुल प्रमाण बीचमें सुवर्णका मासा लगावे मध्यभागमें जलकी नाडी बींधे वह घटिकायंत्र जानो ॥ ८९ ॥ ९० ॥ ताम्रपात्रे जलैः पूर्णे मृत्पात्रे वाथ वा शुभे । गंधपुष्पाक्षतैः सार्द्धैरलंकृत्य प्रयत्नतः ॥ ९१ ॥ तंदुलस्थे स्वर्णयुते वस्त्रयुग्मेन वेष्टिते ॥ मंडलाद्धोंद्यं वीक्ष्य रवेस्तत्र विनिक्षिपेत् ॥ ९२ ॥ फिर जलसेभरे हुए तांबाके पात्रमें अथवा मिट्टीके पात्रमें गंध पुष्पादिकोंसे पूजनकर शोभितकर तंदुल सुवर्णसे युक्त कर दो वस्रोंसे आच्छादितकर (ऐसे जलके भरे हुए पात्रमें) इस घटीयंत्र आधा सूर्योदय होनेके समय छोड देखे ।। ९१ ।। ९२ ।। मंत्रेणानेन पूर्वोक्तलक्षणं यंत्रमुत्तमम् ॥ मुख्यं त्वमसि यंत्राणां ब्रह्मणा निर्मितं पुरा ॥ ९३ ॥ भाव्याभव्याय दंपत्योः कलसाधनकारणम् । द्वादशोंगुलकं प्रोक्तमिति शंकुप्रमाणकम् ॥ ९४ ॥ पूर्वोक्त लक्षणवाले तिस यंत्रको इस मंत्रसे छोड़ै “तुम सबयंत्रों के बीचमुख्य हे पहले बलाजीने ये वरकन्याके सुखदुःखके वास्ते कलसाधनके कारण कहो " और यह यंत्र नहीं बने तो बारह अंगुलका शंकु बनाकर इष्टका निश्चयकरना ।। ९३ ॥ ९४ ।। अन्ययंत्रप्रयोगा ये दुर्लभाः कालसाधने । एवं सुलग्ने दंपत्योः कारयेत्सम्यगीक्षणम् ॥ ९९ ॥