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(१७० ) नारदसंहिता । अन्य यंत्रोंके प्रयोग इष्टसाधनमें दुर्लभ कहे हैं ऐसे सुंदरलग्नमें वरकन्याका विवाह करना चाहिये ।। ९५ ।। हस्तोच्छूितां चतुर्हस्तैश्चतुरस्रां समंततः । स्तंभैश्चतुर्भिः श्लक्ष्णैर्वा वामभागे स्वसद्मनः ॥ ९६ ॥ तहाँ एक हाथ ऊँचे चौकटी चार सुंदरस्तंभोंसे शोभित वेदी घरकी बाँयीतर्फ बनानी चाहिये ।। ९६ ।। समंडलं चतुर्दिक्षु सपानैरतिशोभनम् ॥ प्रागुदक्प्रवणारंभास्तंभा हयशुकादिभिः ॥ ९७ ॥ चारों दिशाओंमें मंडल परिधियोंकरके शोभित बनाने चाहियें पूर्व और उत्तरी तर्फ मंडपका विस्तार करना स्तंभोंपर अश्व तोते आदि चित्रामोंकी शोभां करनी ॥ ९७ ॥ विचित्रितां चित्रकुंभैर्विविधैस्तोरणांकुरैः । भृंगारपुष्पनिचयैर्वर्णकैः समलंकृताम् ॥ ९८ ॥ विप्राशीर्वचनैः पुण्यस्त्रीभिर्दीपैर्मनोरमाम् ॥ वादित्रनृत्यगीताद्यैर्त्दृदयनंदिनीं शुभाम् ।। ९९ ।। विचित्र कलशोंकरके शोभित और अनेक प्रकारको तोरण, अंकर,मंगलीक पूर्णकुंभ पुष्पोंके समह तथा सुंदर रंगोंकरके शो भित, बाह्नणोंके पवित्र आशीर्वादोंसे युक्त,सौभाग्यवती स्त्रियोंके गीतों से शोभित,दीपकोंकी पंक्तियोंसे मनोहरबाजा नृत्य गीत आदिकों से हृदयको आनंद देनेवाली शुभवेदी बनानी चाहिये।।९८।९९।। एवंविधां तामारोहेन्मिथुनं साग्निवेदकम् ।। त्रिषडायगताः पापाः षष्ठाष्टमं विना विधुः ॥ १०० ॥