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भाषाटीकास ७--अ०२. (११) समोऽक्षघट्योः कर्कसिंहयोः शरसन्निभः ॥ चापकीटभयोः स्थूलः शूलवत्तौलिकन्ययोः ॥ २॥ वृद्धभ कुंभके चंद्रके दोनों ने समान कर्क वा सिंहके चंद्रमाके कोने बाणाकार,वृश्चिक और धनके चंद्रमाका स्थूल आकार,तुला तथा कन्याके चंद्रमाका शूलके आकार होय तो शुभदायक है ॥ २ ॥ विपरीतोंदितश्चंद्रो दुर्भिक्षकलहप्रदः । यथोक्तोऽयुदितश्चेंदुः प्रतिमासं सुभिक्षकृत् ॥ ३ ॥ इनसे विपरीत चंद्रमा उदय होवे तो दुर्भिक्ष तथा कलह करे और महीना २ प्रति जैसा कहा है वैसाही उदय होय तो सुभिक्ष कारक जानना ॥ ३ ॥ आषाढद्वयमूलेंद्रधिष्ण्यानां याम्यगः शशी ॥ अग्निप्रदस्तोयचरवनसर्पविनाशकृत् ॥ ९ ॥ पूर्वाषाढ,उत्तराषाढ, ज्येष्ठा, मूल, इन नक्षत्रोंमें दक्षिणचारी चंद्रम होय तो अग्निभय हो जलचर जीव वनसर्प इन्होंका नाशहो ४ विशाखामैत्रयोर्याम्यपार्श्वगः पापकृत्सदा ॥ मध्यगः पितृदैवत्ये द्विदैवत्ये शुभोत्तरे ।। ५॥ विशाखा तथा अनुराधा नक्षत्रपर आया हुआ चंद्रमा दक्षिणकी तर्फ होके गमन करे तो सदा अशुभ है मघापर मध्यमचारी विशाखापर आवे तब उत्तरचारी चंद्रमा शुभदायक है । ५ ।। सम्प्राप्य पौष्णभाद्रौद्रात्षट् चर्क्षाणिशशी शुभः । मध्यगो द्वादशरह्क्षाणि अतीत्य नव वासवात् ॥ ६॥