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भाषटीकास ०-अ० २९. ( ३७७) ये मनुष्यगण जानने और आश्विनी, पुनर्वसु, हस्त, स्वाति, पुष्य, अनुराधा, मृगशिर, श्रवण, रेवती देवतागण है ॥ १२७ ॥ रक्षोगणः पितृत्वाष्ट्रद्विदैवानींद्रतारकाः॥ वसुतोयेशमूलाहितारकाभिर्युतोऽनलः ॥ १२८॥ मघा, चित्रा, बिशाखा, ज्येष्ठा, धनिष्ठा, शतभिषा, मूल, आश्लेषा, कृतिका ये राक्षसगण है ॥ १२८ ॥ दंपत्योर्जन्मभमेकगणे प्रीतिरनेकधा । मध्यमा देवमर्त्यानां राक्षसानां तयोर्मृतिः ॥ १२९ ॥ स्त्री पुरुषको एक गण होय तो अनेक प्रकार उत्तम प्रीति रहै । देवता तथा मनुष्यकी मध्यम प्रीति रहे । राक्षस तथा देवगणका क- लह रहे । राक्षस और मनुष्यगण होय तो दोनोंकी मृत्यु हो।। १२९॥ मृत्युः षष्टाष्टके पंच नवमे त्वनपत्यता ॥ नेष्टं द्विर्द्वादशेन्येषु दंपत्योः प्रीतिरुत्तमा ॥ १३० ॥ स्त्री पुरुषकी राशि परस्पर छठे आठवें हो तो मृत्यु हो, पांचवें नवमें स्थानपर हो तो संतान नहीं हो और परस्पर दूसरे बारहवें राशि होय तौ भी शुभ नहीं है अन्यराशिशुभ है। अन्यराशियोंमें स्त्री पुरुषकी उत्तम प्रीति रहती है ॥ १३० ॥ एकाधिपे मित्रभावे शुभदं पाणिपीडनम् ॥ द्विर्द्वदशे त्रिकोणे च न कदाचित् षडष्टके ।। १३१ ॥ शत्रुषष्ठाष्टके कुंभकन्ययोर्घटमीनयोः ॥ वामोक्षयोर्युयुक्कीटभयोः कुंभकुलीरयोः॥ १३२ ॥ १२