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( १७८ ) नारदसंहिता । क = पंचास्यमृगयोश्चैव निंदितं तदतीव तु ॥ सितार्कज्येंदुभौमसो रिपुमित्रसमा रखेः ।। १३३ ॥ शत्रु षडाष्टकमें प्राप्त तथा अशुभराशियोंको कहतेहैं। कुंभकन्या, कुंभमीन, कन्यावृष, मिथुनवृश्चिक, कुंभकर्क, सिंहमकर, ये राशि कन्यावरकी परस्पर होवें तो अत्यंत निंदित हैं और शुक्र शनि सूर्यके शत्रु हैं । बृहस्पति, चंद्रमा, मंगल मित्र हैं तथा बुध सम है ॥ १३१ ॥ १३२ ॥ १३३ ॥ इन्दोर्न शत्रुरर्कज्ञौ कुजेज्यभृगुसूर्यजाः ॥ कुजस्य ज्ञोर्कचंद्रज्याः शुक्रसूर्यसुतौ क्रमात् ।। १३ ।। चंद्रमाके शत्रु कोई नहीं है सूर्य बुध मित्र हैं। और मंगल, गुरु शुक्र सूर्य ये सम हैं । मंगलका बुध शत्रु है । । सूर्य, चंद्र, गुरु ये । मित्र हैं। शुक्र शनि सम हैं। १ ३४॥ ज्ञस्येंदुरर्कौ च कुजजीवशनैश्चराः ॥ गुरोर्ज्ञशुक्रौ सूर्येन्दुकुजाः स्युर्भास्करात्मजः ॥ १३॥ - बुधका चंद्रमा शत्रु है, सूर्य शुक्र मित्र और मंगलगुरुशनि ये सम हैं। बृहस्पतिका बुध तथा शुक्रशत्रु हैं । सूर्य, चंद्रभा, मंगल, ये मित्र हैं शनि सम है । १३५ ॥ शुक्रस्येंदुरवी ज्ञार्की कुजदेवेशपूजितौ ॥ शनेरर्केन्दुभूपत्रा ज्ञशुक्रौ देवपूजितः॥१३६ ।। शुक्रके चंद्रमा सूर्यं शत्रु हैं, बुध शनि मित्र और मंगल बृहस्पति सम हैं । शनिके सूर्य, चंद्रमा ये शत्रु हैं, बुध शुभ मित्र हैं, बृह स्पति सम है ॥ १३६ ॥ इति० ॥