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भाषाटीकास ०-अ० २९. ( १८१ ) चतुर्थमभिजिल्लग्नमुदयर्क्षात्तु सप्तमम् ।। गोधूलिकं तदुभयं विवाहे पुत्रपौत्रदम् ॥ १६४ ॥ सूर्यके उदयलग्नसे चौथालग्न अभिजित् संज्ञक है और सातवां लग्न गोधूलिक संज्ञक है ये दोनों लग्न विवाहमें पुत्र पौत्रदायकहैं ॥ १४४॥ प्राच्यानां च कलिंगानां मुख्यं गोधूलिकं स्मृतम् ॥ अभिजित्सर्वदेशेषु मुख्यं दोषविनाशकृत् ॥ १४४॥ पूर्ववासी तथा कलिंगदेश निवासी जनोंको गोधूलिक लग्न शुभ कहा है अभिजित् उन सबदेशोंमें मुख्य है सब दोषोंको नष्ट करने वाला है ॥ १४५ ॥ मध्यंदिनगते भानौ मुहूर्तोभिजिताह्वयः ॥ नाशयत्यखिलान्दोषान्पिनाकी त्रिपुरं यथा ॥ १४६ ॥ मध्याह्नसमयमें अभिजित् नामक मुहूर्त आता है वह संपूर्ण दोषोंको ऐसे नष्ट करता है कि जैसे महादेवजीने त्रिपुर दग्ध किया था ॥ १४६ ॥ मध्यंदिनगते भानौ सकलं दोषसंचयम् ॥ करोति दोषमभिजितूलराशिमिवानलः ॥ १४७ ॥ मध्याह्नसमयमें प्राप्त हुआ अभिजित् संपूर्ण दोषोंको ऐसे नष्ट क- रताहै कि जैसे रुईकी राशिको अग्नि नष्ट करदेता है । । १४७ ।। हंत्येकश्च महादोषो गुणलक्षमपीह सः ॥ पावने पंचगव्यं तु पूर्णकुंभं सुरालयम् ॥ १४८॥