पृष्ठम्:नारदसंहिता.pdf/१८९

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AP (१८२ ) नारदसंहिता । औरै जो एकभी कोई महान् दोष हो तो वह लाखों गुणोंको ऐसे नष्ट करता है कि जैसे पवित्र पंचगव्यके कलशको मदिराका कणक अशुद्ध करदेवे ॥ १४८ ॥ पुत्रोद्वाहात्परं पुत्रीविवाहो न ऋतुत्रये ॥ न तयोर्व्रतमुद्वाहान्मंगले नान्यमंगलम् ॥ १४९॥ पुत्र विवाहसे पीछे छहृमहनेतक पुत्रीका विवाह नहीं करना तीन पुत्र पुत्रियोंके विवाह पीछे छह महीनोंतक कोई व्रत तथा अन्यमंगलभी नहीं करना चाहिये ।। १४९ ।। विवाहश्चैकजन्यानां षण्मासाभ्यंतरे यदि । असंशयं त्रिभिवर्षैस्तत्रैका विधवा भवेत् ॥ १४० ॥ एक उदरवाली बहनोंका विवाह छहमहीनोके भीतर होय तो तीनवर्षो भीतर एकजनी विधवा होये ॥ १५० ॥ प्रत्युद्वाहो नैष कार्यो नैकस्मै दुहितुर्द्वयम्॥ न चैकजन्मनोः पुंसोरेकजन्ये तु कन्यके ॥ १९३ ॥ विवाहमें दूसरा विवाह नहीं करना एकवरके वास्ते दो कन्या साथही नहीं विवाहनी और एक उदरके दो भाइयोंको एकउदरकी दो बहनैं नहीं विवाहनी ।। १५१ ॥ नैवं कदाचिदुद्वाहो नैकदा मुंडनद्वयम् । दिवाजातस्तु पितरं रात्रौ तु जननीं तथा ॥ १५२॥ आत्मानं संध्योर्हति नास्ति गंडे विपर्ययः ॥ सुतः सुता वा नियतं श्वशुरं हंति मूलजाः ॥ १९३ ॥