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( ३२ ) नारदसंहिता । रेवतीआदि छः नक्षत्रोंपर आवे तब चंद्रमा शुभ है ग्रंथांतरोंमें लिखाहै कि ये छः अनागत नक्षत्रहैं अर्थात् उत्तराभाद्रपदपर स्थित चंद्रमा रेवतीके तारा पर दीख पडता है इसलिये शुभ कहा औ आर्द्रा आदि बारह नक्षत्रोंपर मध्यम चारी शुभहै ॥ ६ ॥ यमेंद्राहिभतोयेशा मरुतश्चार्द्धतारकाः ॥ ध्रुवादिति दि्विदैवाः स्युरध्यरह्द्धाश्च पराःस्समाः ॥ ७ ॥ भरणी, ज्येष्ठा, आश्लेषा, शतभिषा, स्वाती येअर्धसंज्ञक तारे हैं । और ध्रुवसंज्ञक नक्षत्र, पुनर्वसु विशाखा ये अध्यर्द्ध संज्ञक हैं बाकी रहे नक्षत्र सम कहे हैं । ७ । याभ्यश्रृंगोन्नतः श्रेष्ठः सौम्यश्रृंगोन्नतः शुभः ॥ शुक्ले पिपीलिकाकरे हानिवृद्धी यथाक्रमात् ॥ ८ ॥ दक्षिणका श्रृग ऊंचा श्रेष्ठ है । और उत्तरका श्रृंग की ऊंचा श्रेष्ठ है शुक्लपक्षमें कीडी के आकार याने मध्यमें पतला ऐसा चंद्रमा हानि और कृष्णपक्षमें शुभ दायक है और दक्षिणको स्थूल हो तो हानि उत्तरको ज्यादे स्थूल हो तो वृद्धिदायकहै ॥ ८ ॥ सुभिक्षकृद्विशालेंदुरविशालेर्घनाशनः ॥ अधोमुखे शस्त्रभयं कलहो दंडसन्निभे ॥ ९॥ स्थूल सुंदर चंद्रमा सुभिक्षकारक है कुश, चंद्रमा उदय होय तो दुर्भिक्षकारक है नीचेको मुख होय तो शस्त्र भय हो दंडाकार होय तो प्रजामें कलह हो ॥ ९ ॥