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भाषाटीस०-अ० २९. (१८३ ) ५ एकवार दोविवाह,एकवार दोओं का मुंडन, नहीं कराना अब गंडांत जन्मक विचार कहतेहैं। दिनमें जन्म होय तो पिताको नष्ट करे रात्रिमें जन्म होय तो माताको नष्ट करे संधियोंमें जन्म हो तो आत्माको [आपको नष्ट कैरै गंडांत नक्षत्रमें अन्य विपर्यय नहींहे मूलनक्षत्रमें उत्प न्न पुत्री अथवा पुत्र अपने श्वशुरको नष्ट करते हैं।१५२।१५३। तदंत्यपादजो नैव तथाश्लेषाद्यपादजः ॥ ज्येष्ठांत्यपादजो ज्येष्ठं हंति बालो न बालिका॥१९१ ॥ मूलनक्षत्रके अंत्यचरणमें जन्मे तो दोष नहीं है और आश्लेषाके आद्यचरणमें दोष नहींहैं, ज्येष्ठां नक्षत्रको अंत्यचरणमें जन्माहुआ पुत्र बडेभाईको नष्ट करता है और कन्या जन्में तो यह दोष नहीं है१५४ बालिका मूलऋक्षे तु मातरं पितरं तथा । ऐन्द्री धवाग्रजं हंति देवरं तु द्विदैवजा॥ १९४ मूळनक्षत्रमें कन्या जन्में तो माता पिताको नष्ट करती है और ज्येष्ठानक्षत्रमें जन्में तो अपने ज्येष्ठको नष्ट करती है बिशाखामें जन्में तो देवरको नष्ट करे ॥ १५५ ॥ इति ॥ स्वस्थे नरे सुखासीने यावत्स्पंदति लोचनम् । तस्य त्रिंशत्तमो भागस्तत्परः परिकीर्तितः ॥ १४६ स्वस्थसुखसे बैठे हुए मनुष्यकी आंखिझिपैं ऐसा पल संज्ञक काल है तिसका तीसवाँ हिस्सा तत्परसंज्ञक कहा है ॥ १५६ ॥ तपराच्छतगो भागस्त्रटिरित्यभिधीयते ॥ त्रुटेः सहस्रगो योंशो लग्नकालः स उच्यते ॥ १९७ ॥

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