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भाषाटीकास०-अ० ३ ७, ( १८७ ) सौम्यर्क्षगोधिमित्रेण गुरुणा व विलोकितः ॥ पंचेष्टिके शुभे लग्ने नैधने शुद्धिसंयुते ॥ ९ ॥ लग्न राशि स्वभावज फलको त्यागकर ग्रहोंसे उत्पन्न हुआ कल करती है और अशुभ चंद्रमा भी शुक्र ग्रहके घरमें हो, मित्रसे वा गुरुसे दृष्ट होय तो शुभदायक है और पंचांग शुद्धियुक्त लश

  1. अष्टमे स्थान शुद्ध होनेके समय प्रतिष्ठा करनी शुभ है।८॥९॥

लग्नस्थाः सूर्यचंद्ररराहुकेत्वर्कसूनवः । कर्तृर्मृत्युप्रदाश्चान्ये धनधान्यसुखप्रदाः ॥ १० ॥ लग्नमें स्थित सूर्य, चंद्रमा, राहु, केतु, शनि ये कर्ताकी मृत्यु करते हैं अन्य ग्रह धन धान्य सुखदायक हैं ।। १० ।। द्वितीये नेष्टदाः पापाः शुभाश्चंद्रश्च वित्तदाः ॥ तृतीये निखिलाः खेटाः पुत्रपौत्रसुखप्रदाः ॥ ११ ॥ दूसरे घर पाप ग्रह शुभ नहीं हैं और शुभग्रह तथा चंद्रमा धन दायक है तीसरे घर संपूर्ण ग्रह पुत्र पौत्र सुखदायक हैं ।। ११ ।। चतुर्थे सुखदाः सौम्याः क्रूराश्चंद्रश्च दुःखदाः ॥ हानिदाः पंचमे क्रूराः सौम्याः पुत्रसुखप्रदाः ॥ १२ ॥ चौथे घर सौम्यग्रह शुभदायक हैं, क्रूर ग्रह और चंद्रमा दुःख दायक हैं, पांचवें क्रूरग्रह हानिदायक हैं शुभ ग्रह पुत्र सुख दायक हैं ।। १२ ॥ पूर्णः क्षीणः शशी तत्र पुत्रः पुत्रनाशनः ।। षष्ठे शुभाः शत्रुदाः स्युः पापाः शत्रुक्षयप्रदाः ॥ १३ ॥