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१८८ ) नारदसंहिता । पूर्णचंद्रमा ५ हो तो पुत्रदायक, क्षीण हो तो पुत्रनाशक है, छठे घर शुभ ग्रह शत्रु उत्पन्न करते हैं और पापग्रह शत्रुको नष्ट करते हैं । १३ ॥ पूर्णः क्षीणोपि वा चंद्रः षष्ठेखिलरिपुक्षयम् । करोति कर्तुरचिरादायुपुत्रधनप्रदः ॥ १६ ॥ छठे घर चंद्रमा प्रतिष्ठा करनेवालेके शत्रुओंको शीघ्र ही नष्ट करता है और आयु, पुत्र, धन दायक है ।। १४ ।। व्याधिदाः सप्तमे पापाः सौम्याः सौम्यफलप्रदाः ।। अष्टमस्थानगाः सर्वे कर्तृर्मृत्युप्रदा ग्रहाः ॥ १९॥ सातवें घर पापग्रह व्याधिदायक है और शुभग्रह शुभफल दायक है प्रतिष्ठा लग्नसे अष्टमस्थानमें प्राप्त हुए सब ग्रह कर्त्ताकी मृत्यु करते हैं ॥ १५ ॥ धर्मे पापा ध्नंति सौम्याः शुभदाः शुभदः शशी ॥ भंगदा कर्मगाः पापाः सौम्याश्चंद्रश्च कीर्तिदाः। १६ ॥ नवमें घर पापग्रह अशुभ हैं शुभ ग्रह और चंद्रमा शुभदायक हैं । दशव पापग्रह और चंद्रमा अशुभ हैं शुभग्रह कीर्तिदायक हैं १६ लाभस्थानगताः सर्वे भूरिलाभप्रदा ग्रहाः ।। व्ययस्थानगताः शश्वद्वहुव्ययकरा ग्रहाः ॥ १७ ॥ लाभस्थानमें प्राप्त हुए सभी यह बहुत लाभदायक हैं बारहवें घर सभी ग्रह निरंतर बहुत खर्च करवाते हैं । १७ ।। गुणाधिकतरे लग्ने दोषाल्वत्वतरे यदि । सुराणां स्थापनं तत्र कर्तुरिष्टार्थसिद्धिदम् ॥ १८ ।।