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( १९० ) नारदसहिता । शृद्रको मांससमान सुगंधिवाली भूमि शुभहै और श्वेत, लाल,हरा, काला ये भूमिके रंग ब्राह्मणादिकोंको यथा क्रमसे शुभ हैं। २ ॥ मधुरं कटुकं तिक्तं कषायश्च रसः क्रमात् । अत्यंतं वृद्धिदं नृणामीशानप्रागुदक्प्लवम् ॥ ३ ॥ और मधुर, चर्चरा, कडुवा, कसैला ये भूमिके स्वीद ब्राह्मण आदिकोंको शुभ हैं। और जिस पृथ्वी की ढुलाई ईशान कोण तथा पूर्व व उत्तरीकी तर्फ हो तो सब जातियोंको अत्यंत वृद्धिदायक जाननी ।। ३ ।। अन्यदिक्षु प्लवं तेषां शश्वदत्यंतहानिदम् ॥ तत्र कृत इस्तमात्रं खनित्वा तत्र पूरयेत् ॥ ४ ॥ अन्य दिशाओंमें ढुलान रहे तो निरंतर तिन सब जातियोंको अशुभ है । पृथ्वीकी अन्य परीक्षा कहते हैं कि, कर्त्ता पुरुष अपने हाथ प्रमाण भूमिको खोदकर फिर उसहीं मिट्टीसे उस खढेको भरै ।। ४ ।। अत्यंतवृद्धिरधिके हीने हानिः समे समम् । तथा निशादंौ कृत्वा तु पानीयेन प्रपूरयेत् ॥ ५॥ प्रातर्दृष्टे चले वृद्धिः समं पंके व्रणे क्षयः । एवं लक्षणसंयुक्ते क्षेत्रे सम्यक्समीकृते ॥ ६ ॥ जो मिट्टी बढजाय तो घर चिननेवालेकी अत्यंत वृद्धि रहे हीन मृत्तिका रहे अर्थात् वह खढा नहीं भरे तो हानि हों,समान मृत्तिका रहे तो समान फल जानना और एक हाथ खडा खोदकर रात्रि में पानीसे भरदेवे प्रातःकाल देखे तब जलसे वह गर्त्त कुछ ऊँचा A क