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भाषाटीकास०-अ० ३१. ( १९३ ) आरोग्य ६, व्याधिभय ७, दारिद्रता ८ ये फल दक्षिणदिशामें आठ द्वारोंके हैं। और पुत्रहानि १, शत्रुवृद्धि २, लक्ष्मीप्राप्ति है, धनगम ४ ॥ १५ ॥ सौभाग्यमतिदौर्भाग्यं दुःखं शोकश्च पश्चिमे ।। कलघहानिर्निःसत्त्वं हानिर्धान्यं धनागमः ॥ १६ ॥ सौभाग्य ५, अतिदौर्भाग्य ६, दुःख ७, शोक ८ये फल पश्चि मदिशामें ८ द्वारोंके हैं। और स्त्रीहानि १, दरिद्रता २, हानि ३, धान्य ४, धनागम ५, ॥ १६ ॥ संपद्बृद्धिर्महाभीतिरामयो दिशि शीतगोः । एवं गृहादिषु द्वारं विस्ताराद्विगुणोच्छूितम् ॥ । १७ ॥ संपत्तिकी वृद्धि ६, महाभय ७, रोग ८ ये फल उत्तर दिशामें आठ बार करनेके हैं, ऐसे घर आदिकोंमें द्वार करने चाहियें द्वारकी चौडाईसे दूनी उंचाई करनी शुभ्र है ॥ १७ ॥ इति प्रदक्षिणं द्वारं फलमीशानकोणतः ॥ मूलद्वारस्य चोक्तानि नान्यत्रैवं वियोजयेत् ॥ १८ ॥ एसे ईशानकोणसे दहिने क्रमसे दूर करनेके सब दिशाओंके फ़ल कहे हैं । मूलद्वार अर्थात मुख्य द्वारका यह फल है खिड़की आदिका फल नहीं है ॥ १८ ॥ पश्चिमे दक्षिणे वापि कपाटं स्थापयेद्वहे । प्राकारतां क्षितिं कुर्यादेकाशीतिपदं यथा ॥ १९ ॥ १३