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(१९४ ) नारदसंहिता । घरसे पश्चिमी तर्फ अथवा दक्षिणकी तर्फ किवाड़ स्थापन करने और धरमें ८१ पदका वास्तु होता है अर्थात् वास्तुमें ८१ देवते स्थित कहे हैं ॥ १९ ॥ मध्ये नवपदं ब्रह्मस्थानं तदतिनिंदितम् ।

  1. द्वात्रिंशदंशाः प्राकाराः समीपांशाः समंत : । २० ॥

तर्हां मध्यमे ९ पद ( ९ कोष्ट ) ब्रह्मस्थान कहा है वह जगह प्रतिनिंदित जानो और चारोंतर्फ किलाकी तरह भाग करके बत्तीस अंश ( भाग ) हैं ।। २० ।। ३. पिशाचांशा गृहारंभे दुःखशोकभयप्रदाः ॥ शेषः स्युर्गृहनिर्माणे पुत्रपौत्रधनप्रदाः॥ २१ ॥ वे गृहारंभमें पिशाचोंके अंशहैं तिस जगहमें पहिले घर चिनना आरंभ करे तो दुःख, शोक, भय हो अन्य जगह किसीठौरसे घर चिनना प्रारंभ किया जावे तो पुत्र, पौत्र, धनकी प्राप्तिहोय ।।२१।। शिरस्यर्वाक्तना रेखा दिग्विदिङ्गध्यसंभवाः । ब्रह्मभागपिशाचांशाः शिशूनां यत्र संहतिः ॥ २२॥ मध्यमें चलीहुई रेखा दिशा और कोणोंमें प्राप्त है तहां वास्तु पुरुषके शिरसे उरली तर्फ रेखा होती है तहाँ बह्मभाग और पिशा- चांशके शिशुओंके समूहकी स्थिति है ॥ २२ ॥ तत्र तत्र विजानीयाद्वसतो मर्मसंधयः ॥

मर्माणि संधयो नेष्टास्तेष्वेव विनिवेशने ॥ २३ ॥

तहाँ २ निवास करे तो वास्तुके मर्म और संधि जानना तहां प्रथम निवास करना अशुभ है ॥ २३ ॥