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भाषाटीकास ०-अ० ३३. (१९५) सौम्यफाल्गुनवैशाखमाघश्रावणकार्तिकाः॥ मासाः स्युर्गृहनिर्माणे पुत्रारोग्यधनप्रदाः ॥ २५ ॥ मार्गशिर, फाल्गुन, वैशाख, माध,श्रावण, कार्त्तिक इन महीनोंमें घर चिनवाना प्रारंभ करे तो पुत्र, आरोग्य, धनकी । प्राप्ति हो ॥ २४ ॥ अकारादिषु वर्णेषु दिक्षु प्रागादिषु क्रमात् ॥ खगेशौ तु हरीशाख्यसर्पाखुगजसूकराः ॥ २६॥ वर्गेशाः क्रमतो ज्ञेयाः स्ववर्गात्पंचमो रिपुः ॥ स्ववर्गे परमा प्रीतिः कथ्यते गणकोत्तमैः ॥ २६ ॥ पूर्व आदि दिशाओंमें क्रमसे अकारादि वर्गोविषे गरुड़ १, बिलाव २, सिंह ३, श्वान ४, सर्प ५, मूषक ६, गज ७, सूकर ८ ये आठ वर्ग पूर्व आदि दिशाओंके जानने तहां अपने वर्गसे पांचवें वर्गको शत्रु जाने ऐसे ज्योतिषी जनने कहा है ॥ २५ ॥ २६ ॥ अथान्यप्रकारः । स्ववर्गं द्विगुणं कृत्वा परवर्गेण योजयेत् । अष्टभिस्तु हरेद्भागं योऽधिकः स ऋणी भवेत् है. २७॥ और दूसरा प्रकार यह है कि अपने वर्गको दूना कर प्ररवर्गमें मिलादेवे फिर आठका भाग देना तहां जो अंक बाकी रहे उसको फलरूप जाने इसी प्रकार पराये वर्गको भी दूना कर अपने वर्गमें मिला ८ का भाग देना अंक बँचे सो देखना इन बचेहुए अंकोंमें जिस का अंक अधिक बच जाय वह ऋणी जानना यहां घरके वर्गका अंक ऋणी होना ठीक है । २७ ।। ७