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भाषाटीकास०-अ० ३३. (१९७७ ) चरकी राशि व स्वामीकी राशि परस्पर दूसरे बारहवें स्थान हो तो निर्धनता फल कहना, नवमें पांचवें हो तो कलह कहना, छठे आठवें हो तो मृत्यु कहना,अन्यराशीि शुभदायक जानना३२॥ सूर्यागारकवारांशा वैश्वानरभयप्रदाः ॥ इतरे ग्रहवारांशाः सर्वकामार्थसिद्धये ॥ ३३ ॥ सूर्य तथा मंगलकी राशिके नवांशकमें घर चिनना प्रारंभ करे तो अग्निका भय हो और अन्यवारोंके नवांशकमें करे तो सब कामना सिद्ध होये ।। ३३ ।। नभस्यादिषु मासेषु त्रिषु त्रिषु यथक्रमात् ॥ यद्दिङ्मुखं वास्तु पुमान्कुर्यात्तद्दिङ्मुखं गृहम् ॥ ३४ ॥ भाद्रपद आदि तीन २ महीनोंमें पूर्वादि दिशाओंमें वास्तुका मुख रहता है जिस दिशामें वास्तुका मुख हो तिसही दिशामें घर- का द्वार करना शुभहै ॥ ३४ ॥ प्रतिकूलमुखो गेहे रोगशोकभयप्रदः ॥ सर्वतोमुखगेहानामेष दोषो न विद्यते ॥ ३ ॥ तिससे विपरीत द्वार लगावे तो रोग शोक भय हो और जिन घरोंके चारोतर्फ चौखट लगाई जाती हैं उन घरोंमें यह दोष नहीं होता है ॥ ३५ ॥ मृत्पेटिका स्वर्णरत्नधान्यशैवालसंयुता ॥ गृहमध्ये हस्तमात्रे गर्त्ते न्यासाय विन्यसेत् ॥ ३६ ॥ वास्त्वायामदलं नाभिस्तस्मादब्ध्यंगुलत्रयम् । कुक्षिस्तस्मिन्यसेच्छंकुं पुत्रपौत्रप्रवर्द्धनम् ॥ ३७ ॥