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{१९८ ) नारदसंहिता । मृत्तिकाकी पिटारी,सुवर्ण,रत्न,धान्य,शिवाळ इन सबोंको - इकठ्ठे कर घरके बीच एक हाथ खढा खोदकर तिनमें रेखदेवे वास्तुके विस्तारदलमें नाभि है तिस नाभिसे ७ अंगुलक कुक्षि जानना तह शंकु रोपै तो पुत्र, पौत्र, धनकी प्राप्ति हो ॥ ३६ ॥ ३७ ॥ चतुर्विंशत्रयोविंशत्षोडशद्वादशांगुलैः । विप्रादीनां शंकुमानं स्वर्णवस्त्रावलंकृतम् ॥ ३८ ॥ चौंवीस व अंगुल, तेईस अंगुल,सोलह अंगुल, बारह अंगुल ऐसे ब्राह्मण आदि वर्णाके क्रम का प्रमाण करना चाहिये । सुवर्ण तथा वस्त्रादिकसे शंकुको विभूषित करे ॥ ३८ ॥ खदिरार्जुनशालोत्थं पूगपत्रतरूद्भवम् ॥ रक्तचंदनपालाशरक्तशालविशालजम् ॥.३९ ।। खैर, अर्जुन वृक्ष, शाल, सुपारीवृक्ष, तेजपातवृक्ष, लाल चंदन , ढाक, लाक सुंदर शाल ॥ ३९ ॥ नीयकारं च कुटजं वैषावं बिल्ववृक्षजम् । शंकुं त्रिधा विभज्याथ चतुरस्रं ततः परः ॥ ४० ॥ कटजवृक्ष, कदंब वृक्ष, बाँस, बेलवृक्ष इन्होंने शंकु बनना चाहिये । शंकुमें तीन विभाग कर लेवे अथवा चौंकूटा शंकु करना ॥ ४० ॥ अष्टांशं च तृतीयांशमनस्रभुजुमव्रणम्। एवं लक्षणसंयुक्तं परिकल्प्य शुभे दिने ॥ ४१ ॥ आष्ठ दलका अथवा तीन दलका करना अथवा दलरहित साफ़ गोल करना ऐसे लक्षणसे युक्त शंकु बनाय शुभदिनमें इष्ट साधनकर गृहारंभ करना ॥ ४१ ॥