पृष्ठम्:नारदसंहिता.pdf/२०९

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+ C ( २० २) नारदसंहिता । ये वृक्ष तथा कांटेवाले वृक्ष, जलेहुए वृक्ष, बड,पीपल; कैथ, अगस्तिवृक्ष, सहौंजना वृक्ष, ताडवृक्ष, अमलीवृक्ष ये वृक्ष अत्यंत निंदित कहे हैं घरके आगे नहीं लाने चाहिये ॥ ५४ ॥ पितृवत्स्वाग्रजं गेहं पश्चिमे दक्षिणेऽर् िवा ॥ गृह्यपादा गृहस्तंभाः समाः शस्ताश्च न समाः ॥ ५५॥ पिताका तथा बडे भाईका घर अपने घरसे पश्चिम तथा दक्षिण दिशामें कराना योग्यहै घरके पाद और स्तंभ समान होने चाहियें ऊँचे नीचे नहीं होने चाहियें ॥ ५५॥ नात्युच्छूितं नातिनीचं कुड्योत्सेधं यथारुचि । गृहोपरि गृहदीनामेवं सर्वत्र चिंतयेत् ॥ ५६ ॥ भीतोंकी उंचाई ज्यादै ऊँची नहीं और ज्यादै नीची नहीं करनी सुंदर करनी और घरके ऊपर उतनीही ऊंची भीति उसी जगह द्वार आदि नहीं करने ।। ५६ ।। गृहादीनां गृहे स्राव्यं क्रमशो विविधं स्मृतम् । पंचालमानं वैदेहं कौरवं चैव कन्यकाम् ॥ ४७ ॥ घर आदिकोंमें जल गिरनेके पतनाल अनेक विधिसे करने शुभहैं और पंचाल, वैदेह, कुरु, कान्यकुब्ज़ इन देशोंका मान हस्तादिक कहा हुआ परिमाण ठीक है ॥ ५७ ॥ मागधं शूरसेनं च वंगमेवं क्रमः स्मृतः ॥ तं चतुर्भागविस्तारं संशोधय तदुच्यते ॥ ५८ ॥ मागध, शूरसेन, बंगाला इन्होंके मानसे अपने ( मध्यदेशका ) मानविस्तार चौगुना शुभहे ।। ५८ ।। 4A