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भाषाटीकास०-अ० ३१. (२०३ ). पंचालमानमतुलमुत्तरोत्तरवृद्धितः ॥ वैदेहादीनि शेषाणि मानानि स्युर्यथाक्रमात् ॥ ४९ ॥ पंचाल देश ( पंजाब ) का मान ठीक अन्यदेशोंके मानसे उत्तरोत्तर बढाकर मान ( तोलादिक ) लना चाहिये ।। ५९ ।। पंचालमानं सर्वेषाँ साधारणमतः परम् ॥ अवंतिमानं विप्राणां गांधारं क्षत्रियस्य च ॥ ६० ॥ पांचालदेशका मान साधारणतासे सभी देशोंमें मानना योग्य है और अवंती (उज्जैन ) का मान ब्राह्मणोंको शुभहै क्षत्रियको गांधार देशका ॥ । ६० ॥ । कौजन्यमानं वैश्यानां विप्रादीनां यथोत्तरम् ॥ यथोदितजलस्राव्यं द्वित्रिभूमिवेश्मनः ॥ ६१ ॥ वैश्योंको कौजन्यदेशका मान ग्रहण करना । ब्राह्मण आदिकोंने यथोत्तर वृद्धिभागसे परिमाण लेना जिस मकानमें दो तीन शाला होनें उसमें जल पडनेका स्थान यथायोग्य करना चाहिये ।। ६१॥ उष्ट्रकुंजरशालानां ध्वजायोऽप्यथवा गजे ॥ पशुशालाश्वशालानां ध्वजायोऽप्यथवा वृषे ॥ द्वारे शय्यासना मंत्रे ध्वजसिंह वृषाः शुभाः॥ ६२ ॥ इति श्रीनारदीयसंहितायां वास्तुविधानाध्याय एकत्रिंशत्तमः ॥ ३१॥ ऊंट हाथि आदिकोंकी शालामें पूवक ध्वज आय अथवा गज- संज्ञक आय रहना शुभ है और गौआदि पशुओंकी शाला तथा