पृष्ठम्:नारदसंहिता.pdf/२१५

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( २०८ ) नारदसंहिता । अकपाष्टमनाच्छन्नमदत्तबलिभोजनम् ॥ गृहं न प्रविशेदेव विपदामाकरं हि तत् ।। २० ।। इति श्रीनारदीयसांहितायां वास्तुलक्षणाध्यायो द्वात्रिंशत्तमः ॥ ३२ ॥ बिना किवाड़ोंवाल, बिना ढका हुआ, और जिसमें बलिदान तथा ब्रह्मभोज्य नहीं हुआ हो ऐसे स्थानमें प्रवेश नहीं करना। चाहिये क्योंकि वह विपत्तियोंक खजाना है ।। २० ।। इति श्रीनारदीयसंहिताभाषाटीकायां वास्तुलक्षणाध्याय द्वात्रिंशत्तमः ।। ३२ ।। ॥ अथ यात्राप्रकरणम् ॥ अथ यात्रा यथा नृणामभीष्टफलसिद्धये । स्यात्तथा ता प्रवक्ष्यामि सम्यग्विज्ञातजन्मनाम् ॥१॥ जिस प्रकार मनुष्योंको अभीष्ट फलदायी यात्रा होती है तिसको ज्ञानवान् द्विजातियोंकेवास्ते अच्छे प्रकार कहते हैं ।। १ ।। अज्ञातजन्मनांनृणां फलाप्तिर्घुणवर्णवत् ॥ प्रश्नोदयनिमित्तायैस्तेषामपि फलोदयः ।। २ ॥ और जो अज्ञातजन्मवाले मूर्ख जनहैं तिनको घुणाक्षरन्यायसे भी सुखकी प्राप्ति होती है (घुणाक्षरन्याय यह है कि जैसे घुण लकड़ीको खाता है वहां चिह्न होता है तो कभी दैवयोगसे राम ऐसे अक्षर भी लिखे जाते हैं यह घुणाक्षर न्याय हे ) तिन