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भाषाटीकास०-अ० ३३. (२१ ३ ) सूर्य १८ शुक्र २, मंगल ३ राहु ४, शनि ५, चंद्रमा ६, बुध ७, बृहस्पति ८ ये पूर्व आदि दिशाओंके स्वामी हैं। दिगीश्वर यह लालट ( मस्तक ) पर होय तव गमन करनेवालोंका फिर सट्टा आगमन नहीं हो । ९ ।। लग्नस्थ भास्करः प्राच्यां दिशि यातुर्ललाटगः । द्वादशैकादशः शुक्र आग्नेय्यां तु ललाटगः ॥ १० ॥ जैसे कि लग्नमें सूर्य होवे तब पूर्वदिशामें जानेवालेको ललाट योग है और १2 । १1 घर शुक्र हो तब अग्निकोणमें ललाट योग है ॥ ३० ॥ दशमस्थ कुजो लग्नाद्याम्यायां तु ललाटगः ॥ नवमोऽष्टमगो राहुर्नेर्ऋत्यां तु ललाटगः ॥ ११ ॥ लग्नसे १० घर मंगल हो तब दक्षिणदिशामें और लग्नसे नवमें तथा आठवें राहु होवे तब नैर्ऋत कोणमें ललाटग योग है ।। ११॥ लग्नात्सप्तमगः सौरिः प्रतीच्यां तु ललाटगः ॥ षष्टपंचमगश्चंद्रो वाय्व्यां तु ललाटगः ॥ १२ ॥ लग्नसे ७ शनि हो तब पश्चिमदिशामें ललाटग योग है छठे और पांचवें चंद्रमा हो तब वायव्य कोणमें ललाटग है ।। १२ ॥ । चतुर्थस्थानगः सौम्य उत्तरस्यां ललाटगः॥ द्वित्रिस्थानगतो जीव ईशान्यां तु ललाटगः ॥ १३ ॥ चौथे स्थान बुध हो तब उत्तर दिशामें ललाटयोग है, लग्नसे २ । ३ घर बृहस्पति हो तब ईशान कोणमें जानेवालेके मस्तकपर दिगीश्वर है ।३३ ॥ ।