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भाषाटीकास०-अ० ३३. (२१७) अच्छे ग्रहयोग होनेमें यात्रा अनेक प्रकार फल देनेवाली होतीहै इसलिये तिन योगोंको कहतेहैं । राजाओंकी योग लग्नमें सिद्धि होती है, बाह्मणोंकी शुभ नक्षत्रमें गमन करनेसे सिद्धि होती है ।। ३४ ।। मूर्तितः शक्तितोन्येषां शकुनैस्तस्करस्य च । केंद्रत्रिकोणेष्वेकेन योगः शुक्रेण सूरिणा ॥ ३५ ॥ अतियोगो भवेद्दाभ्यां त्रिभिर्योगोधियोगकः ॥ योगे यियासतां क्षेममतियोगे जयो भवेत् ॥ ३६ ॥ अन्य वैश्य आदिकोंकी लग्नसे तथा अच्छे शुभ मुहूर्तसे सिद्ध होती है, चोर गमन करे तब अच्छा शुभ शकुन होनेसे ही सिद्धि होती है । केंद्रमें अथवा त्रिकोणगें अकेला शुक्र अथवा अकेला बृहस्पति होय तो एक अच्छा योग होता है और दोनों होवें तो अतियोग होता है, तीन ग्रहोंका अच्छा योग हो तो अधियोग होताहै एक अच्छा योगमें गमन करें तो क्षेम कुशल रहे। अतियोगमें जय हो ॥ ३५ ॥ ५ ३६ ॥ योगातियोगे क्षेमं च विजयाय विभूतयः ॥ ३७ ॥ अधियोगमें गमन करे तो क्षेम विजय विभूति होती है ॥ ३७ ॥ व्यापारशत्रुमूर्तिस्थैश्चंद्रमंददिवाकरैः॥ रणे गतस्य भूपस्य जयलक्ष्मीप्रमाणता ॥ ३८ ॥ दशवां तथा छठा घरमें वा लग्नमें चंद्रमा, शनि, सूर्य होवे हों तो रणमें प्राप्तहुए ( गमनकरनेवाले ) राजाको विजयलक्ष्मीकी प्राप्ति होती है । ३८ ॥