पृष्ठम्:नारदसंहिता.pdf/२२५

एतत् पृष्ठम् परिष्कृतम् अस्ति

A ( २३८ ) नारदसंहिता १ अथान्ययोगं चित्रपदमाह । वित्तगतः शशिपुत्रो भ्रातरि वासरनाथः । लग्नगते भृगुपुत्रे स्युः शलभा इव सर्वे ॥ ३९ ॥ अब चित्रपदा छंदसे अन्य योगको कहते हैं । बुध धनघरमें हो, सूर्य तीसरे घर हो, लग्नमें शुक्र हो तब गंमनकरनेवाले राजाके आगे सब टीडीकी तरह नष्ट होजावें ॥ ३९ ।। लग्नस्थे त्रिदशाचार्ये धनायस्थे परे ग्रहे । गतस्य राज्ञोऽरिसेना नियते यममंदिरे ॥ ४० ॥ बृहस्पति लग्नमें स्थित हो और अन्य ग्रह धनस्थान तथ। ग्यारहवें स्थानमें होवें तो गमनकरनेवाले राजाके शत्रुकी सेना धर्मराज के स्थानमें पहुँचती है । ४० ।। लग्ने शुक्रे रवौ लाभे चंद्रे बंधुस्थिते तदा ॥ निहंति यातुः पृतनां केशवः पूतनामिव ॥ ४१ ॥ लग्नमें शुक्र हो, सूर्य ११ घर हो, चौथे घर चंद्रमा हो, ऐसे योगमें गमन करनेवाला राजा शत्रुकी सेनाको इस प्रकार नष्टकर देता है कि जैसे श्रीकृष्ण भगवान्ने पूतना नष्ट करदी थी ।। ४१ ।। । त्रिकोणकेंद्रगाः सौम्याः क्रूराख्यायगता यदि । यस्य यातुश्च लक्ष्मीच्छास्तमुपैत्यभिसारिका ।४२ ॥ शुग्रह नवमें पांचवें घर हों और क्रूरग्रह तीसरे तथा ग्यारहवें घर होवें तब गमन करनेवाले राजाके शत्रुकी लक्ष्मी व्यभिचारिणी होकर अस्त होजाती है ॥ ४२ ॥ K