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भाषाटीकास -अ९ ३ ३. (२१९ -- k जीवार्कचंद्रलग्नारिरंध्रगा यदि गच्छतः । तस्याग्रे स्वल्पमैत्री च न स्थिरा रिपुवाहिनी ॥ ४३ ॥ बृहस्पति, सूर्य , चंद्रमा, ये लग्नमें छठा घर व सातवां घरमें यथाक्रमसे स्थित होवें तब गमनकरनेवाले राजाकी सेना इस प्रकार नष्ट होजातीहै कि जैसे स्वल्प मित्रता शीघ्र ही नष्ट होजाती है ॥ ४३ ॥ स्वोच्चस्थे लग्नगे जीवे चंद्रे लाभगते यदि । त्रिषडायेषु सौरारौ बलवांश्च शुभो यदि । यात्रायां नृपतेस्तस्य हस्ते स्याच्छत्रुमेदिनी ॥ ४४ ॥ बृहस्पति उच्चका होकर उनमें स्थितहो और चंद्रमा ११ घरमें हो और ३।६ । ११ घरमें शनि मंगल होवें, शुभग्रह बलवान् होवें तब गमन करनेवाला राजा शत्रुकी भूमिको ग्रहण करलेताहै । ४४ ।। स्वोच्चस्थे लग्नगे जीवे चंद्रे लाभगते यदि । गतो राजा रिपून्हंति पिनाकी त्रिपुरं यथा ॥ ४५ ॥ उच्चका बृहस्पति लग्नमें और चंद्रमा 11 हो ऐसे इस योगमें गमनकरनेवाला राजा, जैसे शिवजीने त्रिपुर नष्ट किया ऐसे शत्रुओंको नष्ट करता है ।। ४५ ।। मस्तकोदयगे शुक्रे लग्नस्थे लाभगे गुरौ ॥ गतो राजा रिपून् हंति कुमारस्तारकं यथा ॥ ४६ ॥ शुक्र शीर्षोदय कहिये५।६।७। ८। ११ इन लग्नोंपर स्थि तहो और 11 स्थान गुरु होवे तब गमनकरनेवाला राजा शत्रु