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नारदसंहिता । ९ ओंको ऐसे नष्टकरताहै कि जैसे स्वामिकार्तिकजीने तारकासुर नष्ट किया था । ४६ ॥ जीवे लग्नगते शुक्रे केंद्रे वापि त्रिकोणगे | गतो जयत्यरीन् राजा कृष्णवत्यां यथा व्रणम् ॥४७ ।। बृहस्पति लग्नमें हो और शुक्र केंद्रमें अथवा त्रिकोण (९।५ पर हो तब गमनकरनेवाला राजा शत्रुको ऐसे नष्टकरदेवे कि जैसे कृष्ण्वती नदीमें व्रण (घाव ) नष्ट होजाताहै । ४७ ।। लग्नगे ज्ञे शुभे केंद्रे धिष्ण्ये चोपकुले गते । नृपा मुष्णंत्यरीन्ग्रीष्मे ह्नदानीवार्करश्मयः ॥ ४८ ॥ बुध लग्नमें हो, अन्य शुभग्रह केन्द्रमें होतवें, बृहस्पति चैौथे घरमें होये तब गमनकरनेवाले राजे शत्रुओंको ऐसे नष्ट करते हैं कि जैसे सूर्यकी किरण सरोवरोंको ( जोहडोंको ) नष्ट करतीहै । ४८ ।। । शुभे त्रिकोणकेंद्रस्थे लाभे चंद्रेऽथवा रवौ । शहून्हंति गतो राजा त्वंधकरं यथा रविः ॥ १९ ॥ नवमं पाँचवें घर अथवा केंद्रमें शुभग्रह हों, ग्यारहवें घर चंद्रमा अथवा सूर्य हो तब गमनकरनेवाला राजाशत्रुओंको ऐसे नष्ट करताहै कि जैसे सूर्य अंधकारको नष्ट करताहै ।। ४९ ।। स्वक्षेत्रज्ञे शुभे चंद्रे त्रिकोणायगते गतः ॥ विनाशयत्यरीन् राजा तूलराशिमिवानलः ॥ ६० ॥ शुभग्रह अपने क्षेत्रमें हों और चंद्रमा त्रिकोणमें अथवा ग्यारहवें घर हों तब गमनकरनेवाला राजा शत्रुओंको ऐसे नष्ट करताहे कि जैसे रुईके समूहको अग्नि भस्म करदेताहै । ५० ॥ ।