भाषाटीकास ०-अ० ३३. ( २२१ )
इन्दौ खस्थे गुरौ केन्द्रे मंत्री सप्तमगे गतः । नृपो हंति रिपून्सर्वान्पापं पंचाक्षरी यथा ॥ ५१ ॥ चंद्रमा दशवें घर हो, बृहस्पति केंद्रमें हो, शुक्र सातवें हो तब गमनकरनेवाला राजा शत्रुओंको ऐसे नष्ट करताहै कि जैसे पंचाक्षरी मंत्र सब पापोंको नष्ट करदेवे ।। ५१ ।। वर्गोत्तमगते शुक्रेष्येकस्मिन्नेव लग्नगे ॥ हरिस्मृतिर्यथा पापान्हंति शत्रुन् गतो नृपः ॥ ९२॥ उच्चका अकेली शुक्र लग्नमें हो तो गमन करनेवाला राज शत्रुओंको ऐसे नष्ट करें कि जैसे हारिस्मरणसे पाप नष्ट होजावें५२ शुभे केंद्रत्रिकोणस्थे चंद्रे वर्गोत्तमे गते । सगोत्रान्हि रिपून् हंति यथा गोत्रांश्च गोत्रभित् ।।६३ ॥ शुभग्रह केंद्रमें हो अथवा त्रिकोणमें हो चंद्रमा उच्चका हो तब गमनकरनेवाला राजा कुटुंबसहित शत्रुओंको ऐसे नष्ट करताहै कि जैसे इंद्र पर्वतोंको नष्ट करताभया ॥ ५३ ॥ मित्रभस्थे गुरौ केंद्रे त्रिकोणस्थेऽथवासिते। शत्रून् हंति गतो राजा भुजंगं गरुडो यथा ॥ ५४ ॥ मित्रग्रहके घरमें प्राप्तहुआ बृहस्पति केंद्रमें हो अथवा शुक्र त्रिकोणमें हो तब गमनकरनेवाला राज शत्रुओंको ऐसे नष्ट करदेवे जैसे सर्पको गरुड नष्ट करेदेताहै । । ५४ ॥ शुभे केंद्रत्रिकोणस्थे वर्गोत्तमगते गतः । विनाशयत्यरीन्राजा पापान् भागीरथी यथा ॥ ४४ ॥ अ