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(१६) नारदसंहिता । धनिष्ठा श्रवण उत्तराषाढा मृगशिरा रोहिणी इन नक्षत्रोंपर विच रता हुआ बुध जो इन ताराओंको भेदन करे तो वर्षा नहीं हो प्रजा में रोगं भयहो ॥ २ ॥ आर्द्रादिपितृभांतेषु दृश्यते यदि चंद्रजः ॥ तदा दुर्भिक्षकलहरोगाणां वृद्धिभीतिकृत् ॥ ३ ॥ आर्द्रा आदि मघा नक्षत्रपर्यंत बुध स्थित रहे और इन ताराओंको भेदन करे तव दुर्भिक्ष कलह रोग इन्होंकी वृद्धि प्रजामें भय हो।३।। हस्तादिरसतारासु विचरन्निंदुनंदनः ॥ क्षेमं सुभिक्षमारोग्यं कुरुते पशुनाशनम् ॥ ४ ॥ हस्त आदि ज्येष्ठापर्यंत नक्षत्रोंपर बुध स्थित होय तो प्रजामें कुशल सुभिक्ष आरोग्य हो पशुओका नाश हो ॥ ४ ॥ अहिर्बुध्न्यार्येमाग्नेय्यमभेषु चरन्यदि ॥ धातुक्षयं च जंतूनां करोति शशिनंदनः॥५॥ उत्तरा भाद्रपदा उत्तरा फाल्गुनी कृत्तिका,भरणी इन नक्षत्रोंपर हैं. गति करता हुआ बुध होय तो जीवोंके शरीरकी सात धातुओंका नाश हो अर्थात् दुर्भिक्ष हो। ५ ॥ दस्रवारुणनेत्यरेवतीषु चरन्बुधः ॥ भिषक्तुरगवाणिज्यवृत्तीनां नाशकस्तदा ॥६॥ अश्विनी, शतभिषा, मूल, रेवती इन नक्षत्रोंपर विचरता हुआ वेध करता हुआ बुध, वैद्य अश्व तथा वणिजकी वृत्तिकरने वालों का नाश करे ।। ६ ।।