पृष्ठम्:नारदसंहिता.pdf/२३१

एतत् पृष्ठम् परिष्कृतम् अस्ति

( २२४ } नारदसंहिता । और बाकली १ तिलपीठी २ दही ३ शहद ४ घी ५ दूध६ मृगमांस७ मृगक रक्त८ खीर . ९ पपैयाका मांस १० मृग ११ सूकरका मांस ३२ सांठी चावल १३ मालकांगनी१४ पूडे १५ बिचित्र अन्नोंसे उत्पन्न हुए पक्षियोंके मांस १६ फल १७ कछुवाका मांस १८ सारिकपक्षीकां मांस १९ गोहका मांस २० सेहका मांस २१ हविष्यान्न २२ खिचडी २३ मूँग २४ जवोंकी पीठी २५ मत्स्यान्न २६ विचित्रितअन्न २७ दहीभात २८ इन पदार्थोंको खाकर अश्विनी आदि २८ नक्षत्रोंमें यथाक्रमसे यात्रा करनी शुभ है ॥ ६३ ॥ ६४ ॥ ६५ ॥ भुक्त्वा यावज्जयेच्छुर्यो भूमिनाथो जयत्यरीन् ॥ हुताशनं तिलैर्हुयुवा पूजयेत्तु दिगीश्वरम् ॥ ६६॥ इसप्रकार इन अश्विनी आदि नक्षत्रोंमें इन वस्तुओंको खाकर जो विजयकी इच्छा करनेवाला राजा गमन करताहै वह शत्रु ओंको जीतता है गमनसमय तिलोंसे अग्निमें हवन कर जिस दिशामें गमन करना उस दिगीश्वरका पूजन करै ।। ६६ ।। प्रणम्य देवभूदेवानाशीर्वादैर्नृपो वदेत् ॥ कृत्वा होमं दारुणं च तन्मंत्रेण कृतं व्रजेत् ॥ ६७ ॥ देवता तथा ब्राह्मणोको प्रणाम कर आशीर्वाद पाकर दिगीश्वर के मंत्रसे अच्छे प्रकरसे होमकरके गमन करना ।। ६७ ।। वस्त्रं तद्वर्णगंधाद्यैरेवं भक्त्या दिगीश्वरम् । इंद्रमैरावतारूढं शच्या सह विराजितम् ॥ ६८ ॥