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भाषाटीकास ०-अ० ३३. ( २२५) दिगीश्वरके वर्णका वस्त्र चढावे भक्तिसे गंध आदिको करके पूजन करना ऐरावत हस्तीपर सवाहुए इंद्राणीसे युक्तहुए इंद्रको पूजै ॥ ६८ ॥ वज्रपाणिं स्वर्णवर्णं दिव्याभरणभूषितम् ॥ सप्तहस्तं सप्तजिह्वं षडक्षं मेषवाहनम् ॥ ६९ ॥ हाथमें वज्र धारण किये हुए सुवर्णसरीखे वर्णवाले दिव्य आ भूषणोंसे विभूषित ऐसे इंद्रका ध्यान करना और सात हाथोंवाला, सात जिह्वावाला, छह आखोंवाला, मीढाकी सवारी ॥ ६९ ॥ स्वाहाप्रियं रक्तवर्णं स्रुक्स्रुवायुधधारिणम् ॥ ७० ॥ स्वाहाको प्रियमाननेवाला, लालवर्णी, स्रुक् और स्रुवा आयुधको धारण करनेवाला ऐसे अग्निको पूजै ७० ।। दंडायुधं लोहिताक्षं यमं महिषवाहनम् । श्यामलासहितं रक्तवर्णनूर्द्ध्वमुखं शुभम् । खङ्गचर्मधरं नीलं निर्ऋतिं नरवाहनम् ॥ ७३ ॥ दंडआयुधवाला, रक्तनेत्र, भैंसाकी सवारी करनेवाला, श्यामल दूतसहित ऊपरको मुख किये हुए शुभ, ऐसे धर्मराजका दक्षिणदि शामें ध्यान करना, खड्ग और ढालको धारण किये हुए नीलवर्ण मनुष्यकी सवारी किये हुए ॥ ७१ ॥ उर्द्ध्वकेशं विरूपाक्षं दीर्घग्रीवायुतं विभुम् ॥ नागपाशधरं पीतवर्णं मकरवाहनम् ॥ ७२ ॥ • १५