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( २२६ ) नारदसंहिता । ऊपरको बाल उठाये हुए विकराल नेत्र, दीर्घग्रीवा, ऐसे समर्थ नैर्ऋत ( राक्षस ) को पूजै । नागफ़ांशधारी, पीलावर्ण, मग रमच्छकी सवारी ॥ ७२ ।। । वरुणं कालिनाथं च रत्नाभरणभूषितम् । प्राणीनां प्राणरूपं च द्विबाहुं दंडपाणिनम् ॥ ७३ ॥ कालिनाथ, रत्नोंके आभूषणोंसे विभूषित ऐसे वरुणदेवका ध्यान करना । प्राणधारियोंका प्राण, दोभुजावाला हाथमें दंड लिये हुए । ७३ ॥ वायुं कृष्णमृगासीनं पूजयेदंजनापतिम् ।। अश्वासीनं कुंतपाणिं द्विबाहुं स्वर्णसंनिभम् ॥ ७४ ॥ काले मृगपर सवार हुआ अंजनाके स्वामी, ऐसे वायुदेझ्का पूजन करना । घोडापर सवार हुआ, हाथमें माला शस्त्र और दोभुजाओवाला सुवर्णसमान् कांतिवळा ॥ ७४ ॥ कुबेरं चित्रलेखेशं यक्षगंधर्वनायकम् ॥ पिनाकिनं वृषारूढं गौरीपतिमनुत्तमम् ॥ ७९ ॥ चित्रलेखका स्वामी, यक्ष गंधर्वां स्त्रमी ऐसे कुबेरका पूजन करना और पिनाक धनुषवाले बैलपर सवार हुए, पार्वतीके पति, परमोत्तम ॥ ७५ ॥ श्वेतवर्णं चंद्रमौलिं नागयज्ञोपवीतिनम् । अप्रयाणे स्वयं कार्याऽपेक्षया पूजनं तथा ॥ ७६ ॥ श्वेतवर्ण, चंद्रमाको मस्तकमें धारण करनेवाले सर्पका यज्ञोप वीत धारण किये हुए ऐसे महादेवका ध्यान करना यह ईशान