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( २२८ ) नारदसंहिता.। इत्यादि उत्पातहोना तथा भूकंप आदि तीन प्रकारके उत्पात होनेमें राजा तीन दिनतक गमन नहीं करे। और गमनसमय गीदडी, काग, कपोती इन्होंकी वाणी शुभहै । ८० ।। वामांगे कोकिला पल्ली पोतकी सूकरी रला ॥ वानरः काकऋक्षः श्वा भासः स्युर्दक्षिणोः शुभाः। ८१॥ और कोयल, छिपकली, पोतकी ( दुर्गापक्षी ) सूकरी, खाती चिड़ा, ये बायींतर्फ आवें तो शुभहैं। और वानर, काग, रीछ, कुत्ता, भासपक्षी (पटबीजना ) ये दहिनीतर्फ शुभ हैं ॥ ८१ ॥ चापं त्यक्वा चतुष्पात्तु शुभदो वामतो गमः ॥ कृष्णं त्यक्ता प्रयाते तु कृकलाशो न वीक्षितः ॥ ८२ ॥ पपैया बिना चतुष्पादपक्षी बायींतर्फ गमन करे तो शुभहै काला पूपैया विना चतुष्पाद पक्षी बायींतर्फ गमन करे तो शुभहे काला बिना अन्यतरहका किरलकांट दीखना शुभ नहीं हैं । ८२ ॥ वराहशशगोधानां सर्पाणां कीर्तनं शुभम् । दृष्टमात्रेण यात्रायां व्यस्तं सर्वे प्रवेशने ॥ ८३ ॥ सूकर, शशा, गोह, सांप इन्होंका उच्चारण करना शुमहै यह यात्राका शकुन है और प्रवेशसमयमें शकुन विपरीत जानने अर्थाव इन सर्पादिीकोंका दीखना अच्छा है और उच्चारण अच्छा । नहीं ॥ . ८३ ॥ यात्रासिद्धिर्भवेद्दष्टे शवे रोदनवर्जिते । प्रवेशो रोदनयुते शवे स्याच्च शिवप्रदः ॥ ८४ ॥ ९