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( २३४) नारदसंहिता । चंद्रमा आदि ग्रह पीछेसे अथवा आगेसे सूर्यके समीप होवें तो वर्षा करते हैं और वक्री होकर सूर्यसे दूर होवें तो वर्षा नहीं करें शुक्र उत्तरचारी होय तो वर्षा करता है और दक्षिणचारी होय तो वर्षा नहीं करे शुक्रके उदय अस्त होनेके समय वर्षा होतीहै और सूर्य आर्द्रापर आये उसदिनका फल कहते हैं । ६ ।। ७ ॥ । विपत्तिः सस्यहानिः स्यादह्न्यार्द्राप्रवेशने । संध्ययोः सस्यवृद्धिः स्यात्सर्वसंपन्नृणां निशि ८॥ दिनमें आर्द्राप्रवेश होय तो प्रजामें दुःख और खेतीका नाश हो दोनों संधियोंमें आर्द्राप्रवेश हो तो खेतीकी वृद्धि हो रात्रिमें आर्द्रा प्रवेश हो तो मनुष्योंकी संपूर्ण समृद्दि बढै ॥ ८ ॥ स्तोकवृष्टिरनर्घः स्याद्वृष्टिः सस्यसंपदः ॥ आर्द्रोदये प्रभिन्ने चेद्भवेदीतिर्न संशयः ॥ ९॥ आर्द्राप्रवेश समय थोडीसी वर्षा हो तो अन्नादि महंगे हों और वर्षा नहीं हो तो खेतियोंकी वृद्धि हो पवन चले तो टीडी आदिका भूय हो ॥ ९ ॥ चंद्रज्येज्ञेथवा शुक्रे केंद्रे त्वीतिर्विनश्यति ॥ पर्वाषाढगतोभानुजीर्मूतैः परिवेष्टितः ॥ १० ॥ आर्द्राप्रवेश लग्नसमय चंद्रमा बृहस्पति, बुध, शुक्र ये केंद्रमें ‘होंतो टीडी आदि उपद्रव नष्ट होज़ावें पूर्वाषाढ नक्षत्रपर सूर्य आवे तब ( धनुकीसंक्रांतिमें ) सूर्य बादलोंसे आच्छादित रहे तो ॥ १० ॥