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भाषाटीकास०-अ० ३५ ( २३५ } ' वर्षत्यार्द्रादिमूलांतं प्रत्यक्ष प्रत्यहं तथा ॥ वृष्टिश्च पौष्णभे तस्मादशर्क्षेषु न वर्षति ॥ ११ ॥ आर्द्राआदि मूलनक्षत्रतक सूर्य रहे तबतक यथाकालमें सुंदर वर्षा होती है और रेवती नक्षत्रपर सूर्य होनेके समय वर्षा होजाय तो रेवती आदि दश नक्षत्रोंतक सूर्य वर्षा नहीं करता है ॥१ १ ॥ सिंहे भिन्ने कुतो वृष्टिरभिन्ने कर्कटे कुतः ॥ कन्योदये प्रभिन्ने चेत्सर्वथा वृष्टिरुत्तमा ॥ १२ ॥ सिंही संक्रांतिके दिन वर्षों बादल हो और कर्की संक्रांतिके दिन वर्षा बादल नहीं हो तो वर्षा संवत् अच्छा नहीं हो ॥ १२ ॥ अहिर्बुध्न्य पूर्वसस्यं परसस्यं च रेवती ॥ भरणी सर्वसस्यं च सर्वनाशाय चाश्विनी ॥ १३ ॥ उत्तराभाद्रपदपर सूर्य हो तब बादलगर्भ रहे पूर्व सस्य अर्थात सामणूखेती नहीं हो रेवतीमें गर्भहो तो परसस्य कहिये सा ढूकी खेती नहीं हो अश्विनी भरणी पर सूर्य हो तब बादल वर्षा होजाय तो संपूर्ण खेतियां नष्ट होवें ॥ १३ ॥ गुरोः सप्तमराशिस्थः प्रत्यक्षो भृगुजो यदा । तदातिवर्षणं भूरि प्रावृट्काले बलोज्झिते ॥ १६ ॥ बृहस्पतिसे आगे सातवीं राशिंपर शुक्र स्थित होय तो वर्षाकालमें वर्षा होनेके बादभी बहुत अच्छी वर्षा होनेलगे ।१४।। आसन्नमर्कशशिनोः परिवेषगतोत्तरा । विद्युत्प्रपूर्ण मंडूकास्त्वनावृष्टिर्भवेत्तदा ॥ १५ ॥