पृष्ठम्:नारदसंहिता.pdf/२४३

एतत् पृष्ठम् परिष्कृतम् अस्ति

( २३६) नारदसंहिता ।

सूर्य और चंद्रमाके समीप उत्तरदिशामें मंडल होय अथवा बिजली चमके और उत्तरदिशामें ही भीडक बोले तो बर्षा नहीं हो ॥१५॥ यदा प्रत्यंगता भेकाः स्वसद्मोपरि संस्थिताः॥ पतंति दक्षिणस्था वा भवेदवृष्टिस्तदाचिरात् ॥ १६ ॥ जो पश्चिमदिशामें अथवा दक्षिणदिशामें अपने स्थानपर बैठे हुए मीडक उछलके पडनेलगे तो वर्षा शीघही होगी ऐसे जाने ॥१६॥ नखैर्लिखंतो मार्जाराश्चैव निर्लोभसंस्थिताः ॥ सेतुबंधपरा बालाः सद्यो वै वृष्टिहेतवः ॥ १७ ॥ और बिलाव नखोंकरके भूमिको खोदों तथा निर्लोभ हुए स्थित रहें तथा बालक पुल बांधकर खेलने लगें तो वर्षा होगी ऐसा जानना ॥ १७ ॥ पिपीलिका शिरश्छिंन्ना व्यवायः सर्पयोस्तथा ॥ द्रुमाधिरोहः सर्पाणां प्रतींदुर्वृष्टिसूचकाः ॥ १८ ।। कीडीपर कीडी चढें अथवा कीडी अंडा लेकर चलें सर्प सर्पिणी एकजगह स्थित दीखें सर्प वृक्षपर चडाहुआ दीखे - बादलेमें चंद्रमाके सम्मुख दूसरा चंद्रमा दीखे ये सब वर्षा होनेके लक्षण जानने । १८ ।। उदयास्तमये काले विवर्णार्कोऽथ वा शशी ॥ मधुवर्णातिवायुश्चेदतिवृष्टिर्भवेत्तदा ॥ १९ ॥ इति श्रीनारदीयसंहितायां सद्योवृष्टिलक्षणाध्यायः पंचत्रिंशत्तमः ॥ ३८ ॥