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( २३८) नारदसंहिता । ( पांशू ) मंडलहैं और गौड़, कोंकण, शाल्वदेश, पुंड्रदेश ये भी तिसके पार्श्वमंडल हैं ॥ ३ ॥ सिंधुकाशीमहाराष्ट्रसौराष्ट्राः पुच्छमंडलम् । पुलिंदभीष्मयवनगुर्जराः पादमंडलम् ॥ ४ ॥ सिंधुदेश, काशी, महाराष्ट्रसौराष्ट्र ये देश तिसके पुच्छमंडल हैं पुलिंद, भीष्म, यवन, गुर्जर ये देश पादमंडळ हैं ॥ ४ ॥ कुरुकाश्मीरमाद्रेयमत्स्यास्तत्पार्श्वमंडलम् । खशाङ्गवंगबाह्विककांबोजाः पाणिमंडलम् ॥ ९ ॥ कुरु, काश्मीरमात्रेय,मत्स्यदेश ये तिसके पार्श्वमैडल्हैं खश, अंग, यंगवाहीककोज ये देश तिसके हाथंकी जगह समझने चाहियें कृत्तिकादीनि धिष्ण्यानि त्रीणित्रिणि क्रमान्न्यसेत् ।। नाभेर्दिक्षु नवांगेषु पापैर्दुंष्टुं कुमैः शुभम् ॥ ६ ॥ इति श्रीनारदीयसं०कूर्मविभागाध्यायः षट्त्रिंशत्तमः३६॥ इसप्रकार तिस कूर्मेके नव विभाग कर यथाक्रमसे कृत्तिका आदि तीन २ नक्षत्र रखने । पहले ३ नक्षत्र मध्यंमें नाभिमंडलपर रखके मगध लाटादि देशों क्रमसे इन ९ अंगोंपर रखने फिर जिस अंगपरके नक्षत्रोंपर पापग्रह होवें उसी अंगके देशोंमें अशुभ फल हो और जिप्त देशके नक्षत्रपर शुभग्रह आरहे हों उस देशमें शुभफल हो ऐसे जानो ॥ ६ ॥ इति श्रीनारदीयसंहिताभाषाटीकायां कूर्मविभागाध्यायः षट्त्रिंशत्तमः ३६ ॥