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भाषाटीकास ०-अ० ३८. (२४३ ) सोलह ऋत्विजोंके वास्ते अपनी शक्तिके अनुसार दक्षिणा देवे ॥ १८ ॥ इति श्रीनारदीयसंहिता भाषाटीकायामुत्पाताध्यायः सप्तत्रिंशत्तमः ॥ ३७ ॥ उत्पातास्त्रिविधा लोके दिवि भौमांतरिक्षजाः ॥ तेषां नामानि शांतिं च सम्यग्वक्ष्ये पृथक्पृथक् ॥ १ ॥ संसारमें तीन प्रकारके उस्पात हैं स्वर्ग, भूमि, आकाश इन तीन जगह होनेवाले उत्पात हैं तिनके नामोंको और शांतिको अलग २ कहते हैं ॥ १ ॥ दिवा वा यदि वा रात्रौ यः पश्येत्काकमैथुनम् ॥ स नरो मृत्युमाप्नोति यदि वा स्थाननाशनम् ॥ २॥ दिनमें अथवा रात्रिमें जो पुरुष काकके मैथुनको देखता है उस पुरुषकी मृत्युहो अथवा स्थान नष्ट होवे ॥ २ ॥ काकघातव्रतं चैव विदधीताथ वत्सरम् । पितृदेवद्विजान्भक्त्या प्रत्यहं चाभिवादनम् ॥ ३ ॥ तिस पुरुषने वर्षदिनतक काकघात नामक व्रत करना और पितर देवता ब्राह्मण इन्होंको भक्तिसे दिन २ प्रति प्रणाम करना ॥ ३ ॥ जितेंद्रियः शुद्धमनाः सत्यधर्मपरायणः । तदोषशमनायेत्थं शांतिकर्म समाचरेत् ॥ ४ ॥ जितेंद्रिय शुद्धमवाला रहे, सत्यधर्ममें तत्पर रहै तिस दोषको शांत करनेके वास्ते इसप्रकार शांति करे कि ॥ ४ ॥