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( २४४ ) नारदसंहिता। गृहस्येशानकोणे तु होमस्थानं प्रकल्पयेत् ॥ स्वगृह्योक्तविधानेन तत्र स्थाप्य हुताशनम् ॥ ४ ॥ वरमें ईशानकोणकी तर्फ अग्निस्थान कल्पितकर तहां अपने गृह्योक्त विधिसे अग्निस्थापन करना ।। ५ ।। मुखांते समिदाज्यानैर्होमश्चाऽष्टोत्तरं शतम् । प्रतिमंत्रं त्र्यंबकेन चाथ मृत्युंजयेन वा ॥ ६ ॥ व्याहृतिभिर्व्रीहितिलैर्जपाद्यंतं प्रकल्पयेत् ॥ पूर्णाहुतिं च जुहुयात्कर्ता शुचिरलंकृतः ॥ ७ ॥ फिर समिध,घृत, तिलादिक अन्न इन्होंसे ‘ऽयंबकं यजामहे’ इस मंत्रसे अथवा महामृत्यंजयमंत्रसे अर्थात् ‘भूभुवःस्वः' इत्यादिक व्याहृतियोंसहित त्रयंबकमंत्रसे चावलतिलोंसे जपकी संख्याके अनुसार होम कर और पवित्र विभूषितहुआ कर्ता यजमान होमके अंतमें पूर्णाहुति करें ॥ ६ ॥ ७ ॥ स्वर्णश्रृंगीं रौप्यखुरां कृष्णां धेनुं पयस्विनीम् । वस्त्रालंकारसहितां निष्कद्वादशसंयुताम् ॥ ८॥ और सुवर्णकी सींगडी तथा चांदीके खुरोंसे विभूषत हुईका अच्छे दुधवाली कालीगौको वस्त्र आभूषणोंसे विभूषितकर बारह निष्क अर्थात् ४८ तोले सुवर्णसे युक्त ॥ ८ ॥ तदर्द्धेन तदर्द्धेन तदर्द्धेनाथ वा पुनः । यथा वित्तानुसारेण तन्यूनाधिककल्पना ॥ ९ ॥ अथवा तससे आधा अथवा तिससे भी आधा अथवा तिससे भी आधा सुवर्ण वा चांदी अपने वित्तके अनुसार कमज्यादैदेना ॥९ ।।