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(२४६) नारदसंहिता । सव्ये भुजे जयः प्रोक्तो ह्यपसव्ये महद्भयम् । कुक्षौ दक्षिणभागस्य धनलाभस्तथैव च ॥ ३ ॥ दहिनी भुजापर पड़े तो जयप्राप्ति और बांयीं भुजापर महान भय हो दहिनी कुक्षिपर धनका लाभ हो ।। ३ ।। वामकुक्षौ तु निधनं गदितं पूर्वसूरिभिः । सव्यहस्ते मित्रलाभो वामहस्ते तु निस्वता ॥ ४ ॥ बांयकुक्षिपर मृत्यु, दहिने हाथपर मित्रका लाभ और बरा.ें हाथपर दरिद्रताहो ऐसे पुरातन पंडितोंने कहा है ।। ४ ।। उदरे सव्यभागे तु सुपुत्रावाप्तिरुच्यते ॥ वामभागे महारोगः कक्ष्यां सव्ये महद्यशः ॥ ५॥ उदरके दहिने भागपर पड़े तो पुत्रकी प्राप्ति और उदरपर बायाीतर्फ पडे तो महान् रोग हो दहिनीकटिपर पड़े तो महान् यश मिलै ॥ ५ ॥ वामकट्यां तु निधनं मुनिभिस्तत्त्वदर्शिभिः ॥ जान्वोरेवं विजानीयात्सव्यपादे शुभावहम् ॥ ६ ॥ बांयीं कटिपर तत्वदर्शींमुनियोंने मृत्यु कही है और दोनों गोडोंपर भी मृत्यु जानना, दहिने पांवपर शुभ फल जानना ।। ६ ।। वांमपादे तु गमनमिति प्राहुर्महर्षयः । स्त्रीणां तु सरटश्चैव व्यस्तमेतत्फलं वदेत् ॥ ७ ॥ बायें पैरपर पड़े तो गमन हो ऐसे महर्षि जनोंने कहा है इसीप्र कार किरलकाँटका फल जानना और स्त्रियोंको यह फल विपरीत