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(२४८) नारदसंहिता । गणेशक्षेत्रपालार्कदुर्गाक्षोण्यंगदेवताः । तासां प्रीत्यै जप कार्यः शेषं पूर्ववदाचरेत् ॥ १२ ॥ गणेश, क्षेत्रपाल, सूर्य,दुर्गा, चौसठयोगिनी, अंगदेवता इन्होंकी प्रीतिके वास्ते इनके मंत्रोंका जप करै अन्य सब विधि पहिलेकी तरह करनी ॥ १२ ॥ ऋत्विग्भ्यो दक्षिणां दद्यात्षोडशभ्यः स्वशक्तितः॥१३॥ इति श्रीनारदीयसंहितायां पल्लीसरष्टाशुभस्थानशांति प्रकरणाध्याय एकोनचत्वारिंशत्तमः॥३९॥ अपनी शक्तिको अनुसार सोलह ऋत्विजोंके अर्थ दक्षिणा देनी १३ इति श्रीनारदीयसंहिताभाषाटीकायां पल्लीसरटाशुभस्थानशांति प्रकरणाध्याय एकोनचत्वारिंशत्तमः ।। ३९॥ आरोहेत गृहं यस्य कपोतो वा प्रवेशयेत् ॥ स्थानहानिर्भवेत्तस्य यद्वानर्थपरंपरा ॥ १ ॥ जिसके घरमें कपोत ( बाजपक्षी ) प्रवेश होजाय अथवा घरके ऊपर बैठजाय उसके स्थानकी हानि हो अथवा कोई दुःख होवे ।। १ ॥ दोषाय धनिनां गेहे दरिद्राणां शिवाय च ॥ तच्छांतिस्तु प्रकर्तव्या जपहोमविधानतः॥ २॥ धनीपुरुषोंके घरमें प्रवेश होना यह अशुभफल है और दरिद्री पुरुषोंके घरमें तथा शून्यघरमें शुभफल जानना तिसकी शांति जप होम विधिसे करनी चाहिये ।। २ ।।