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(२५० ) नारदसंहिता । फिर ब्राह्मणोंको भोजन करके आप अपने बंधुजनों सहित भोजन करें ऐसे जो भक्तिसे करता है वह तिसदोषसे छूटजाताहै ॥८॥ पिंगलायाः स्वरेप्येवं मधुवाल्मीकयोरपि । संपूर्णमंगले हानिः शून्यसद्मनि मंगलम्॥ ९॥ पिंगला (कोतरी ) के बोलनेमें तथा मधु वाल्मीक पक्षीके बोलेनमें भी ऐसे ही शांति कराना। संपूर्ण मंगलकी जगह इनका प्रचार होवे तो हानिहो और शून्यमकानमें बोलें तो शुभफ़ल हे ॥ ९ ॥ प्राकारेषु पुरद्वारे प्रासादाद्येषु वीथिषु ॥ तत्फलं ग्रामपस्यैव सीमा सीमाधिपस्य च ।। १० ॥ किला, कोट,पुरका दरवाजा, मंदिर, राजभवन, गली इन्होंपर बोले तो वह फल ग्रामके अधिपतिको ही होता है सीमापर बोले तो सीमाके मालिकको फल होता है ।। १० ।। शांतिकर्माखिलं कार्यं पूर्वोक्तेन क्रमेण तु ॥ ११ ॥ इति श्रीनारदीयसंहितायां कपोतपंगलादिशां तिरध्यायश्चत्वारिंशत्तमः ॥ ४० ॥ इन कोतरी आदिकोंके बोलनेमें पूर्वोक्त क्रमकरके संपूर्ण शांति । कर्म कराना चहिये ।। ११ ॥ इति श्रीनारदीयसंहिताभाषांटीकायां कपोतापिंगळादि शांतिरध्यायश्चत्वारिंशत्तमः ।। ४० ।।

उत्पाता ह्यखिलानृणामगम्याः शुभसूचकाः ॥ तथापि सद्यः फलदं शिथिलीजननं महत् ॥ १ ॥