पृष्ठम्:नारदसंहिता.pdf/२५८

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भाषाटीकास ०-अ० ४ १. ( २५१ ) शुभसूचक संपूर्ण उत्पात, मनुष्योंको प्राप्त होने दुर्लभ हैं। परंतु शिथिलीजनन अर्थात् अचानकसे शिथिल होकर किसी वस्तुका गिरना उछडना आदि उत्पात तत्काल महान फल करते हैं ॥१॥ शिथिलीज़ननं ग्रामे सेतौ वा देवतालये । तत्फलं ग्रामपस्यैव सीम्नि सीमाधिपस्य च ॥ २॥ ग्राममें अथवा पुलपर वा देवताके मंदिरमें जो यह पूर्वोक्त उत्पात होय तो ग्रामके स्वामीको अशुभ फल होता हैसीमापर हो तो सीमाके" मालिकको अशुभ फल होता है ॥ २ ॥ शिथिलीजनने हानिः सर्वस्थानेषु दिक्षु च ॥ तदोषशमनायैव शांतिकर्म समाचरेत् ॥ ३ ॥ सबस्थानोंमें सब दिशाओंमें जहां शिथिलजनन उत्पात (किसी-- वस्तुका रूपबिगडना अचानकसे ढीलाहोना) होता है वहां हानि होती है तिस दोषको शमन करनेके वास्ते शांति करनी चाहिये।।३॥ स्वर्णान् मृत्युप्रतिमां कृत्वा वित्तानुसारतः ॥ रक्तवर्णं चर्मदंडधरं महिषवाहनम् ॥ ४ ॥ सुवर्णकरके वित्तके अनुसार मृत्युकी मूर्ति बनवावे लालवर्ण, अळ तथा दंडको धारण किये, भैंसा की सवारी ऐसी मूर्ति बनवानी चाहिये ।। ४ ।। नववस्त्रं च संवेष्टय तंदुलोपरि पूजयेत् ॥ तल्लिंगेन च मंत्रेण नैवेद्यं तु यथाविधि॥ ९