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मी = (२५४ ) नारदसंहिता । दूषित होजाय तथा दांत आदि कटजाय, काक चोंचमारदेवे तथा क्रिरलकांट चढजाय तो उसस्थानका भी शुभाऽशुभ फल विचारकर स्वस्तिवाचन करवाके ब्राह्मण जिमावें पवित्र रहे।१ ॥२॥३।४। लाभदः स्त्रीजनानां त्वशुभदो व्यत्ययो व्ययः ॥ दक्षिणे स्फुरणं लाभं वामे स्फुरणमन्यथा ।। ९ ।। इति श्रीनारदीयसंहितायां निमित्तशांति- रध्याय द्विचत्वारिंशत्तमः ।। ४२ ॥ जो शकुन पुरुषोंको लाभदायक हैं वह स्त्रियोंको अशुभ विपरीत तथा हानिदायक जानना । पुरुषका दहिना अंग स्फुरणा शुभ है बायां अंग स्फुरणा अशुभ हें ॥ ५ ॥ इति श्रीनारदीयसंहिताभाषाटीकायां निमित्रशांतिरध्यायो द्विचत्वारिंशत्तमः ॥ ४२ ।। स्वर्गच्युतानां रूपाणि यान्युल्कास्तानि वै भुवि । धिष्ण्योल्काविद्युदशनिताराः पंचविधाः स्मृताः ॥ ३॥ स्वर्गसे पतितहुई उल्काओंके जो रूप पृथ्वी पर होते हैं तिनको कहते हैं । धिष्ण्या, उल्का, विद्युत, अशनि, तारा ऐसे पांच श्रकारका उल्कापात जानना ।। १ ।। सम्यक्पञ्चविधानं च वक्ष्यते लक्षणं फलम् ॥ पाचयंति त्रिभिः पक्षैर्धिष्ण्योल्काशनिसंज्ञिताः ॥ २ ॥ अच्छे प्रकारसे इनपांचोंका विधान लक्षण फल कहते हैं। ज, उल्का, अशनि इन संज्ञाओंवाली उल्का ४५ दिनमें करती हैं । । २ ॥ ।