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भाषाटीकास०-अ० ४३. ( २५५ ) विद्युत्षद्भिरहोभिश्च तारस्तद्वत्फलप्रदः । फलपाककरी तारा धिष्ण्याख्यार्द्धा फलप्रदा ॥ ३ ॥ विद्युत् छः दिननें फलकरे, तारापात भी ६ दिनमें फलकरे तारापात पूराफल करता है । धिष्ण्य आधाफल करती है।। ३ ॥ उल्का विद्युदशन्याख्याः संपूर्णफलदा नृणाम् ॥ अश्वेभोष्ट्रपशुनूषु वृक्षक्षोणीषु च क्रमात् ॥ ४ ॥ विदारयंति पतितं स्वनेन महता शनिः ॥ जनयित्री च संत्रासं विद्युव्द्योम्निं त्विव स्फुटम् ॥५॥ उल्का, अशनि, विद्यत् ये मनुष्योंको पूराफल देती हैं । अश्व, हाथी, ऊंट, पशु, मनुष्य, वृक्षोंकी पंक्ति इन सबोंपर यथाक्रमसे पडती हैं और तोड फोड डालती हैं बडाभारी कडकना शब्द करती हैं यह अशनिका लक्षण है । और बिजली आकाशमें बहुत चिमकती है बडा भय दिखाती है यह विद्युतका लक्षण है॥४॥५॥ चक्रा विशालज्वलिता पतती वनराजिषु ॥ धिष्ण्यान्त्यपुच्छा पतति ज्वलितांगारसन्निभा ॥ ६॥ चक्राकार विशाल ज्वलिता, वनमें बहुतदूरतक पडतीहुई जले हुए अगारसदृश, अंतमें पूंछसे आकारवाली ऐसी धिष्ण्या जाननी।।६।। हस्तद्वयप्रमाणा सा दृश्यते च समीपतः ॥ ताराब्जतनुवच्छुक्ला हस्तदीर्घांबुजारुणा ॥ ७ ॥ वह दो हाथप्रमाणकी समीपमें ही दीखती है चंद्रमासरीखी सफेद दीखतीहै ऐसी तारा जाननी और एक हाथ लंबी लालकमल सरीखी लाल ।। ७ ॥ । K