भाषाटीकास०-अ० ४३. ( २५७ ।। । और जो आकाशमें ही रहे तो लोगोंको अत्यंत श्रमकरे जो सूर्य चंद्रमाको स्पर्श करे तो राजाओंको कंपना हो ॥ १२ ॥
परचक्रागमभयं जनानां क्षुज्जलाद्भयम् ॥ अर्केंन्द्वोरपसव्योल्का पौरेतरविनाशदा ॥ १३ ॥ दूसरे राजाके आनेका भयहो मनुष्यको दुर्भिक्षका तथा जलका. भयहो, सूर्यचंद्रमाके दहिनीतर्फ होकर पडे तो शहरसे अलग तुच्छ बाहरगावोंमें रहनेवाले जनों को पीडा करतीं है ॥ १३ ॥ उदयास्तमयेर्केंंद्वोः परतोल्का शुभप्रदा ॥ सितरक्ता पीतसिता सोल्का नेष्ट द्विजातिभिः॥१४ ॥ सितोदितोभये पार्श्वे पुच्छे दिक्षु विदिक्षु च ॥ विप्रादीनामनिष्टानि पतितोल्कादिभान्यपि ॥ १९॥ सूर्यचंद्रमा के उदय अस्त होनेके बाद संधिमें पड़े तो शुभदायकं जानना और सफेदलाल, तथा पीलीसफेद उल्का पडे तो द्विजातियों को अच्छी नहीं है दोनों बराबरोंमें सफेद वर्णहों उल्काका पुच्छ भाग दिशाओंमें रहे अथवा अग्निकोणआदि विदिशाओंमें रहे तब पृथ्वीपर पड़े तो ऐसे टूटे हुए तारे ब्राह्मण आदि वर्णोंको अशुभ हैं तिनको कहते हैं ॥ १४ ॥ १५ ।। तारा कुंदनिभा स्निग्धा भूभुजां तु शुभप्रदा । नीला श्यामारुणा चाग्निवर्णाक्ता साशुभप्रदा ॥ १६ ॥ • १७