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भाषाटीकास०-अ० ४३ (२५९) राजाके भवनमें अथवा देवताओंकी मूर्त्तियोंपर बिजली पडे लो राज्यको नष्ट करे, घरमें पड़े तो घरके मालिकको पीड़ा करें पर्वतोंपर पडेतो राजाओंको पीडाकरे ॥ २० ॥ दीक्षितानां दिगीशानां कर्षकाणां स्थलेषु च ॥ प्राकारे परिखयां वा द्वारि तत्परमध्यमे ॥ २१ ॥ स्थलमें पड़े तो दीक्षित ( ब्रह्मचारी आदि ) दिशाओंके स्वामी किसानलोग इन्होंको पीडाकरे और किला, कोट, खाही, शहरका दरवाजा, शहरक मध्यभाग ।। २१ ॥ परचक्रागमभयं राज्यं पौरजनक्षयः ॥ गोष्ठे गोस्वामिनां पीडा शिल्पकानां जलेषु च ॥२२॥ इन्होंमें पड़े तो दूसरा राज्य आनेका भय हो और शहरके लोगों का नाशहो, गोशालामें पड़े तो गौओंके स्वामियोंको पीडा हो, जलमें पडे तो ( शिल्पी ) कारीगरोंको पीडा हो । २२ ॥ राजहंत्री तंतुनिभा चंद्रध्वजसमाथ वा ॥ प्रतीपगा राजपत्नीं तिर्यगा च चमूपतिम् ॥ २३ ॥ तंतुसमान आकारखाली पड़े तो राजाको नष्ट करे, इंद्रधनुष समान पडे तो भी राजको नष्ट करे और उलटी होकर पडे तो राजाकी रानीको नष्ट करै, तिरछी पडे तो सेनापतिको नष्टकरै ।। २३ ।। अधोमुखी नृपं इति ब्राह्मणानूर्ध्वगा तथा ॥ वृक्षोपमा पुच्छेनिभा जनसंक्षोभकारिणी ॥ २९ ॥ नीचेको मुखवाली उल्का राजाको नष्टकरै, ऊपरको मुखवाली ब्राह्मणोंको नष्टकरे, वृक्षसमान तथा पूंछसमान आकारखाली उल्का मनुष्योंको त्रास देती है ॥ २४ ॥