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4A ( २६० ) नारदसंहिता। प्रसर्पिणी या सर्प्पवत्सा गणानामनिष्टदा ।। वर्तुलोल्का पुरं हंति च्छत्राकारा पुरोहितम् सर्पकी तरफ फैलती हुई उल्का ( बिजली) पडे ॥ तो २९ किसी " भी चाकर लोगोंको अशुभ है। गोल उल्का पड़े तो पुरको नष्ट करे छत्राकार पड़े तो राजाके पुरोहितको नष्ट करै ।। २५ ।। वंशगुल्मलताकारा राष्ट्रविद्राविणी तथा ॥ सकरव्यालसदृशा खंडाकारा च पापदा ॥ २६ ॥ बांस, गुल्म, लता इनके समान आकावाली पड़े तो राज्यको नष्ट करें और सूकर सर्प तथा खंडित आकारवाली उल्का पडे तो पापदायक (अशुभदायक ) है ।। २६ ॥ इंद्रचापनिभा राज्यं मूर्छिता हंति तोयदम् ॥ २७ ॥ इति श्रीनारदीयसंहितायामुल्कालक्षणा ध्यायस्त्रिचत्वारिंशत्तमः ॥ ४३ ॥ इंद्रधनुष समान आकारवाली पड़े तो राज्यको नष्ट करें और मूर्च्छिता अर्थात कांतिहीन उल्का ( बिजली ) पडे तो जलका कामकरनेवाले जनोंको पीडा करें ॥ २७ ॥ इति श्रीनारदीयसंहिताभाषाटीका. उल्कालक्षणाध्याय त्रिचत्वारिंशत्तमः ।। ४३ ।। किरणा वायुनिहता उच्छूिता मंडलीकृताः ॥ नानावर्णाकृतयस्ते परिवेषाः शशीनयोः ॥ १ ॥