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भाषाटीकास०-अ० ४४. ( २६१ ) वायुसे निहतहुई सूर्य व चंद्रमाकी किरण ऊपरको होके मंडलाकार होती हैं उनके अनेक वर्ण और अनेक आकार होते हैं तिनको सूर्यचंद्रमाके परिवेष ( मंडल ) कहते हैं ॥ १ ॥ ते रक्तनीलपांडूरकपोताभ्राश्च कापिलाः ॥ सपीतशुकवर्णाश्च प्रागादिदिक्षु वृष्टिदाः ॥ २ ॥ मुहुर्मुहुः प्रलीयंते न संपूर्णफलप्रदाः ॥ । शुभास्तु कपिलाः स्रिग्धाः क्षीरतैलांबुसन्निभाः॥ ३॥ वे मंडल लाल,नील,पांडुरवर्ण (गुलाबी) कपोतसरीखे तथा बादल सरीखे वर्णवाले तथा कपिल वर्णवाले पीले तथा हरे इन वर्णोंके होते हैं ।ये वर्ण यथा क्रमसे पूर्वादि दिशाओंमें होर्वे तो वर्षा होवे और जो मंडलके वर्ण बारंबार हो होकर नष्ट होजावें तो पूरा फल नहीं करतेहैं कपिलवर्ण, चिकने दूध तथा तेल व जलसरीखी कांतिवाले। २॥३॥ चापश्रृंगाटकरथक्षतजाभारुणाः शुभाः । अनेकवृक्षवर्णाश्च परिवेषा नृपांतकृत् ॥ ४ ॥ धनुष, चौपट, रथ इनके आकार तथा रक्तसमान लाल ऐसे कुंडल शुभदायक कहे हैं अनेक दरख़तोंके समान आकार हरेकुंडळ राजाओंको नष्ट करतेहैं ॥ ४ ॥ अहर्निशं प्रतिदिनं चंद्रार्कवरुणो यदा । परिविष्टो नृपवधं कुरुतो लोहितो यदा ॥ ४॥ जो दिनरात नियम करके अर्थात् दिनमें सूर्यके और रात्रिमें चंद्रमाके इस प्रकार सूर्यचंद्रमाके लालवर्ण मंडल बना रहे तो राजाकी मृत्यु हो ॥ ५ ॥