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( २०) नारदसंहिता । मूलमें ज्येष्ठ,पूर्वाषाढा उत्तराषाढमें आषाढ, श्रवण, धनिष्ठामें श्रावण, शतभिषा, पूर्वाभाद्रपद, उत्तराभाद्रपदमें भाद्रपद, रेवती अश्विनी भरणीमें स्थित बृहस्पति उदय हो वह वर्षमें आश्विन कहाताहै। १॥ पीडिा स्यात्कार्तिके वर्षे रथगोग्न्युपजीविनाम् ॥ क्षुच्छस्त्राभिभूयं वृद्धिः पुष्पकौसुंभजीविनाम् ॥ २ ॥ इस प्रकार कार्तिक वर्षमें बृहस्पति उदय हो तो रथ तथा गौ आदि पशुओंसे आजीविका करनेवाले, अग्निसे आजीविका करने वाले,हलवाई आदि पुष्प वा कसुंभा आदिसे आजीविका करनेवाले इन्होंको पीडा हो और दुर्भिक्ष, युद्ध, अग्निभय हो । । २ ।। अनावृष्टिः सौम्यवर्षे मृगाशुशलभांडजैः । सर्वसस्यवधो व्याधिर्वैरं राज्ञां परस्परम् ॥ ३ ॥ मार्गशिर वर्षमें वर्षा नहीं हो तो, मृग, मूंसा, टीडी, तोते आदि पक्षी इन्होंसे खेतीका नाश हो संपूर्ण प्रजामें बीमारी राजाओंका परस्पर वैर होवे ।। ३ ।। निवृत्तवैरा क्षितिपा जगदानंदकारकाः ॥ पुष्टिकर्मरताः सर्वे पौषेब्देध्वरतत्पराः ॥ ४ ॥ पौषसंज्ञक वर्षमें राजाओंमें परस्पर मित्रता प्रजामें आनंद संपूर्ण मनुष्य सुखी तथा यज्ञ करनेमें तत्पर रहैं ।। ४॥ माघेऽब्दे सततं सर्वे पितृपूजनतत्पराः ॥ सुभिक्षं क्षेममारोग्यं वृष्टिः कर्षकसंमता ॥८॥ माघ वर्षमें निरंतर सब मनुष्य पितरोंका पूजन करनेमें तत्पर रहें सुभिक्ष हो क्षेम आरोग्य हो किसान लोगोंके मनके माफिक वर्षा होय ॥ । ५।।