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( २६४ ) नारदसंहिता । नवमीआदि तीनतिथियोंमें राजाओंको अशुभ जानना । द्वादशीको मंडल होय तो राजा पुरोहितका नाश हो, त्रयोदशीके दिन हो तो सेनाका कोप हो अथवा राजाका अवरोध हो चतुर्दशीके दिन हो तो रानीके रोग होवे ॥ १४ ॥ १५ ॥ परिवेषः पंचदश्यां क्षितीशानामनिष्टदः ॥ परिवेषस्य मध्ये वा बाह्ये रेखा भवेद्यदि ।। १६ ।। स्थायिनां मध्यमा नेष्टा यायिनां पार्श्वसंस्थिता । प्रावृडृतौ च शरदि परिवेषो जलप्रदः ॥ १७ ॥ पूर्णिमाको मंडल होय तो राजाओंको अशुभ है मंडलके मध्यमें अथवा बाहिरी तर्फ रेखा होय तो स्थायी ( अपने किलामें स्थितरहनेवाले ) राजाओंको मध्यम जानना और बराबरोंमें रेखा होय तो गमन करनेवाले राजाओंको अशुभ जानना, प्रावृट् ऋतुमें तथा शरदऋतुमें मंडल होय तो वर्षा करे ॥ १६ ॥ । १७ ।। । प्रायेणान्येषु ऋतुषु तदुक्तफलदायिनः ॥ १८ ॥ इति श्रीनारदीयसंहितायां परिवेषलक्षणाध्याय- श्चतुश्चत्वारिंशत्तमः॥ ४४ ॥ और विशेषकरके अन्य ऋतुओंमें सूर्य वा चंद्र के मंडल होय तो जैसा पूर्व कहाहै वही फल जानना ॥ ३८ ॥ इति श्रीनारदीयसंहिताभाषादीकायां परिवेषलक्षणाध्याय श्चतुश्चत्वारिंशत्तमः ॥ ४४ ॥