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भाषाटीकास ०-अ० ४७ . (२६५ }

नानावर्णाशवो भानोः साभ्रवायुविघट्टिताः । यद्व्योम्नि चापसंस्थानमिंद्रचापं प्रदृश्यते ॥ १ ॥ सूर्यकी किरण बादल और वायुके संयोगसे अनेक प्रकारले रंगवाली होकर आकाशमें धनुषके आकार होजाती हैं वह इंद्रधनष कहलाता है । १ । अथवा शेषनरेंद्रदीर्घनिश्वाससंभवम् । विदिक्षुजं दिक्षुजं च तद्दिङ्नृपविनाशनम् ॥ २ ॥ अथवा सर्पराज शेषनागके उच्च श्वास लेनेसे इंद्रधनुष होजाता है वह जिस दिशामें अथवा जिसकोणमें होय तिसीदाशके स्वामी राजाको नष्ट करे ॥ २ ॥ पीतपालनीलैश्च वह्निशस्त्रास्त्रभीतिदम् ॥ वृक्षजं व्याधिदं चापं भूमिजं सस्यनाशदम् ॥ ३ ॥ अवृष्टिदं जलोद्भूतं वल्मीके युद्धभीतिदम् ॥ अवृष्टौ वृष्टिदं चैद्यां दिशि वृष्यामवृष्टिदम् ॥ ९ ॥ पीला, पाडलवर्ण, नीलावर्ण इंद्रधनुष होय तो अग्नि तथा युद्धका भय करे वृक्षके ऊपर किरणोंकी क्रांति पड़के धनुषाकार दीखे तो प्रजामें रोग हो तथा भूमिपर दीखे तो खेतीको नष्टकरे जलमें क्रांति पडके धनुष दीखे तो वर्षा नहीं हो । बमईमें बिलमें धनुषकी क्रांति पडे तो प्रजामें युद्धका भयहो, पूर्वोदिशामें इंद्रधनुष होय तो वर्षा नहीं हो तो वर्षा होने लगे और वर्षा होतेहुए पूर्वदिशामें इन्द्रधनुष दीखे तो वर्षाहोनी बंद होजाय ॥ ३॥४॥ सदैव वृष्टिदं पश्चाद्दिशोरितरयोस्तथा ॥ रात्र्यामिंद्रधनुः प्राच्यां नृपहानिर्भवेद्यदि ॥ ५॥ के